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________________ २२ जैनधर्मसिंधु. शत्रुजय नाम गुणना. उद्यापनमें पांचशेरगोधुमका एक लामु एसे पांच लामु चढावना ज्ञानगुरु संघ नक्तिकरना. ॥ सात सौख्य तप ॥ निरंतर सात एकासणा करके उपर एक उपवासकरना. उद्यापनमें सात मोदक ढोकना. आठमा मोदक चतुर्गुण बमाकरना । सोलजातिके पकवान चढाना. झानगुरु नक्तिकरना. ॥दीर समुष तप ॥श्रावणमासमे करना । निरंतर आठ एकासणा करके उपर एक उपवास करना. उद्यापनमे क्षीर खांड और घृतसे जरा हुवा थाल प्रजुकों ढोकना. ज्ञानगुरु संघ जक्तिकरनी. ॥ उमासी तप ॥ एकाशनांतरित यथाशक्तिरन्न उपवास करना. उद्यापनमे एकसो अस्सी मोदक मंदरमे चढाना. झान गुरु नक्ति करना महावीर स्वामीके नामकी नवकार वाली तपके दिन गुणनी. ॥ संवत्सरी तप ॥ एकाशनां तरीत ३६० उपवास करना ॥ षन देवजीके नामकी नवकारवाली गुणनी. उद्यापनमें चांदीका घट सेलडीके रससे नरके मंदीरमे चढाना. अक्षयतृतीयाके दिनपारणा श्रावे तेसे तप आदरना । ज्ञानगुरु संघकी नक्ति करनी ॥ ॥ अष्ट मासिक तप ॥ मध्यम बावीस तिर्थकर आश्रयिक एकांतरीत २४० उपवास करना. । जिस जिस जिन कातप आवे उन उनके नामकी नव.
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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