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________________ द्वितीयपरिच्छेद . २२७ नाथजी की पूजा पूर्वक अंबिका देवी की स्थापना करके एकाशन तप करके पूजा करनी. नैवेद्यफल ढोकना. एसे पांचवार करना. उद्यापनमें साधुजीको वस्त्र, छान्न, पान, बेहेराना. अंबिकाकी मुर्त्ति दोपुत्रसहित म्र वृक्षकेनीचे होय एसे देखा वकी करानी. ॥ मुकुट सप्तमी तप ॥ श्राषाढवदि सप्तमी के दिन उपवास करके श्रीविमल नाथजी की पूजा क a. कार्त्तिकवद सप्तमी के दिन उपवास करके श्री आदिनाथजी की पूजा करनी. मिगसर वदि ससमी दिने उपवास करके श्रीमहावीर स्वामी की पूजा करना. पोषवदि सप्तमीका उपवास करके श्री पार्श्वनाथ स्वामी की पूजा करनी उद्यापनमे लोक नालकी स्थापना करके मुकुट स्थानमे रहि जिना वलिको रत्न जति मुकुट चढाना. गवसें पुजा प ढाना एकेक जिनको सात सात वस्तु चढाना. ज्ञान गुरु संघकी नक्ति करना. ॥ स्वर्गस्वस्तिक तप ॥ चार एकासा निरंतर करके उपर एक उपवास करना. उद्यापनमे पांच जातिके एक कम धानके स्वस्तिक जिन मंदिरमे करा के पूजा पढावी. ज्ञान गुरु संघरक्ति करना. " ॥ शत्रुंजयमोदक तप ॥ पुरीमढ, एकासणा, नीवी. आयंबिल, उपवास निरंतर पांच दिन तक करना,
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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