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________________ द्वितीयपरिवेद. कार वाली गुणना. उद्यापनमे २४० मोदक चढाना झान गुरु नक्ति करे. ॥ चतुर्विध श्री संघ तप ॥ प्रथम दो उपवास ( बेला) करके एकांतरीत साठ उपवास करने । उद्यापनमे चतुर्विध श्री संघकी और ज्ञान गुरु नक्ति करनी. ॥ श्रष्ट कर्मोत्तर प्रकृति तप ॥ ज्ञानावरणीनी उत्तर प्रकृति ५, दर्शना वर्णीनी नव, वेदनीकी दो, मोहिनी कर्मकी अहाइस, आयुकर्मकी चार, नाम कर्मकी एकशोतीन, गोत्र कर्मकी दो, अंतरायकमकी पांच, सब मील १५७ प्रकृतिके १५७ उपवास एकाशनांतरित करना. एसे करनेसें एक उली हुइ. एसी श्रापली करनेसे यह तप पुरा होताहे सिक पद गुणणा. उद्यापनमे १५७ मोदक जिनमंदिरमे चढावणा. ज्ञानपूजा गुरुपूजा संघपूजा करनी. पूजा पढावणी॥ ॥हार तप ॥ प्रथम दो उपवास करके एकाशनांतरित सात उपवास करना. पी जपवास तीन ( तेला) करके एकाशनांतरित सात उपवास कर ना. अंतमे बेला करना. एवं तपो दिन एक वीस और पारणा सत्तर होय. सिझ पद गुणना, उद्यापनमें सुवर्ण, माणक, मोति, विजुम, रजत, पदक काहबीका सहित हार बनाके वर्धमान स्वामीको
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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