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________________ २५६ जैनधर्मसिंधु. नीवी. चौदशका आयंबिल. पुनमका उपवासकरना. पागंतरमे दुसरी रीती यहहे की आशोसुदी बारसका आयंबिल. तेरसकी नीवी. चौदशका ए. कासणा. पुनमका उपवास. पुनमके उपवासके दिन उद्यापन करना सो यहरीतसे की पुनमके दिन सूर्योदय पहिले पवित्रहोके अपनी पसलीमे बानूषण श्रीफल, अक्षत लेके वाजित्रादि महोत्सव पूर्वक जिनप्रसादमे जाना. प्रथम प्रददिना करके उपरोक्त वस्तु ढोकना. फुसरी प्रदक्षिणामें बिजोरा ढोकनां. तीसरी प्रदक्षणामे तांबलपत्र सहित सुपारी ढोकनी. चतुर्थ प्रदक्षिणामे बकमो (अव्य) ढोकना. सात जातिके धान ढोकनां. लवण. कापम. कसुंब. कपास. पुरी १७ तांबे पीतलका बेहेमा ढोकनां. एकसो सोले दीपक करने. एक दीपकमे चांदीकी दीवट सुवर्णका कोडिया ढोकना. गुरुनक्तिसं घनक्ति करना. ॥ श्रुत देवता तप ॥ सुदपदकी एकादशीका उपवासकरना और मौनरहना. एसी इग्यारह एका दशी करनी. श्रुतदेवताकी पूजा करनी. उद्यानमे अपने घर सरस्वतीकी प्रतिमाकी प्रतिष्टाकराय के पधरावनी. और गठमाउसे पूजा पढानी ज्ञान ज्ञानीकी और संघकीनक्ति करनी. ॥ अंबिकातप ॥ कृष्ण पंचमीके दिन श्रीनेम
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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