SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्मसिंधु. रतराय जिन साथे बोले, स्वामी शत्रुजय कुण तोले, जिननुं वचन अमोले ॥षन कहे सुणो नरतराय, बहरी पालंता जे नर जाय, पातक नूको थाय॥ पशुपंखी जे ऋण गिरि श्रावे; जव त्रीजे ते सिहज थाय, अजरामरपद पावे ॥ जिनमतमें शेजो वखाएयो, तेमें आगम दिलमाहें आण्यो, सुणतां सुख जर आण्यो ॥३॥ संघपति नरत नरेसर आवे, सोवन तणा प्रासाद करावे, मणिमय मूरती गवे॥ नाजिराया मरुदेवी माता, ब्राह्मी सुंदरी बेन विख्या ता, मूर्ति नवाणु जाता ॥ गोमुखने चकेसरी देवी, शत्रुजय सार करे नित्यमेवी, तपगह उपर हेवी॥ श्रीविजयसेन सूरीश्वर राया, श्रीविजयदेव सूरी प्रणमी पाया, षनदास गुणगाया ॥४॥ इति ॥ ___॥ श्रीशंखेश्वर जिन स्तुति ॥ ॥ शंखेश्वर पासजी पूजियें ॥ नर नवनो लाहो लीजियें ॥ मन वंडित पूरण सुरतरू ॥ जय वामासुत अलवेसरु ॥१॥ दोय राता जिनवर अतिनला ॥ दोय धोला जिनवर गुण निला ॥ दोय लीला दोय सामल कह्या ॥ शोले जिन कंचन वर्ण लह्या ॥२॥ आगम ते जिनवर नांखियो ॥ गणधरें ते हियडे राखियो।तेहनो रस जेणेंचाखियो।ते हई शि व सुख साखियो ॥३॥ धरणीधर राय पद्मावती॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy