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________________ द्वितीयपरिच्छेद . १ नमीजेंज | ॥ वरसी परिक्कमणुं मुनिवंदन, संघसयल खामीजेजी ॥ दिवस लगे अमर प्रजावना, दान सुपात्रें दीजेजी ॥ जडबाहु गुरु वयण सूणीने, ज्ञान सुधारस पीजेजी ॥ ३ ॥ तीरथमां विमलाचल गिरिमां; मेरु महीधर नेमजी ॥ मुनिवरमांहिं जिनवर मोहोटा, पर्व पजूस तेमजी ॥ श्रवसर पामी स्वामी वल, बहु पकवान वाईजी ॥ खिमा वि जय जिन देवी सिद्धाई, दिन दिन अधिक वधाईजी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ श्रथ सिद्धाचलजीनी स्तुति ॥ श्री सिद्धाचल तीरथ सार, गिरिवरमा जेम मेरु उदार, ठाकुर राम अपार ॥ मंत्रमाहें नवकारज जाएं, तारामां जेम चंद्र वखाणुं, जलधरमांहें जल जाएं || पंखी मांहें जेम उत्तम हंस, कुलमांहे जिम रुपननो वंश, नानि तणो जे यंस ॥ क्षमावंतमाहे जिम अरिहंता, तप सूरा मुनिवर महंता, शत्रुंजय गिरि गुणवंता ॥१॥ रुषन अजित संभव अजिनंदा, सुमतीनाथ मुख पुनमचंदा, पद्मप्रन सुखकंदा ॥ श्रीसुपार्श्व चंद्रप्रन सुविधि, शितल श्रेयांस सेवो बहु बुद्धि, वासु पूज्य मती शुद्धि ॥ विमल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु र मल्लि नमुं एकांति, मुनिसुव्रत शुद्ध पंथी ॥ नमी पासने वीर चोवीस, नेम विना ए जिन वीस, सिद्धगिरि श्रव्याईश ॥ २ ॥ -
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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