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________________ द्वितीयपरिवेद. १०ए प्रनु पार्श्व तणा गुण गावती ॥ सहु संघना संकट चूरती ॥ नयविमलना वंबित पूरती ॥४॥ इति॥ ॥ सिकाचलजीनी स्तुति ॥ पुंगर गिरि महिमां आगममां प्रसिद्ध ॥ विमलाचल नेटी लहिये अविचल शकि॥ पंचमी गती पोहोता मुनिवर कोडा कोड ॥ इण तीर्थे श्राबी कर्म विपातिक बोड ॥१॥ (श्रा स्तुति चार वार पण कहेवाय डे ) ॥अथ नवपद थुलि ॥ ॥ नित प्रति हुं प्रणमुं सिझचक्र सुन नाव । हिवकारज सिछिनो लाधो एह उपाय ॥ तुक नाम पसायें अरति ब्याधि पुलाय । ग तुज अनुग्रहथ। सुख संपति मुफ थाय ॥१॥श्री अरिहंत नमियै सिक सूरी उवकाय । मुनिवर त्रिण करणे दंसण नांण सुहाय । फुगविधि चारित्तें बुधविध तप मन नाय । ये नवपद ध्यातां निरुपम शिव सुख थाय ॥२॥ विद्या प्रवादै जाणो ए अधिकार ॥श्रीगुरु उ पदेशे सिद्धचक्र उकार । प्रवचन अनुसारें जांष्यो एह विचार; नविजन नित ध्यावो सुरतरु गुणनंमार ॥ ३ ॥ जिनधरम अनुरागी चके सरि सुखकार । सेवकनें आपै सुख संपति परिवार । हिव निकि उदयकरि चारित्र नंदी मन नाय । जिनचंद सूरी सर खरतर पति सुपसाय ॥ इति ॥ नवपदस्तुतिः॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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