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________________ द्वितीयपरिच्छेद . १७३ आषाढ शुदि श्रावमे, अष्टमी गति पामी ॥ ५ ॥ श्रावण वदनी श्रावमे, नमि जन्म्या जगना ॥ तिम श्रावण शुदि आठमे, पासजीनुं निर्वाण ॥ ६ ॥ जावा वदि श्राम दिने, चविया स्वामी सुपास ॥ जिन उत्तम पदपद्मनें, सेव्यायी शिववास ॥ ७ ॥ ॥ इति ॥ ॥ अथ एकादशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो ॥ संघ चतुर्विध थापवा, महसेनवन आयो ॥ १ ॥ मा धव सीत एकादशी, सोमल द्वीज यज्ञ ॥ इंद्रभू तियादें मख्या, एकादश विज्ञ ॥ २ ॥ एकादशसें चगुणा, तेनो परिवार || वेद अर्थ अवलो करे, मन अजिमान अपार ॥ ३ ॥ जीवादिक संशय हरी ए, एकादश गणधार ॥ वीरें थाप्या वंदीयें, जिन शासन जयकार ॥ ४ ॥ मलि जन्म र मलि पास, वरचरण विलासी ॥ रुषन श्रजित सुमति न मि, मलि घनघाति विनाशी ॥ ५ ॥ पद्मन शिव वास पास, जवजवना तोडी || एकादशी दिन था पणी, रुद्धि सघली जोडी ॥ ६ ॥ दश खेत्रें त्रिहुं कालनां, त्रणशें कल्याण || वरस अग्यार एकादशी, राधो वर ना ॥ ७ ॥ अगीयार अंग लखावीयें, एकादश पाठां ॥ पूंजणी ठवणी विंटणी, मशी का गल काठां ॥ ८ ॥ गीयार व्रत बांवां ए, वहो
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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