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जैनधर्मसिंधु. पडिमा श्रगियार ॥ खिमाविजय जिन शासने, सफ ल करो अवतार ॥ ए॥ इति ॥
॥अथ श्रीविशस्थानकनुं चैत्यवंदन ॥ ॥पहेले पद अरिहंत नमुं, बीजे सर्व सिफ॥ त्रीजे प्रवचन मन धरो, आचारज सिक ॥१॥ न मोथेराणं पांचमे, पाठक गुण ॥ नमो लोए स वसाहुणं, जे जे गुण गरिहे॥२॥ नमो नाणस्स श्राम्मे, दर्शन मन नावो ॥ विनय करो गुणवंतनो, चारित्रपद ध्यावो ॥३॥ नमो बंन वयधारीणं, तेर मे किरियाणं ॥ नमो तवस्स चौदमे, गोयम नमो जिणाणं ॥४॥ चारित्र ज्ञान सुअस्सने ए, नमो तिबस्स जाणी ॥ जिन उत्तमपद पद्मने, नमता हो ये सुखखाणी ॥५॥ ॥श्रथ विशस्थानकना कानस्सगर्नु चैत्यवंदन ॥
॥ चोवीश पंदर पिसतालीशनो, त्रीशनो करी यें ॥ दश पंचवीश सत्तावीशनो; काउस्सग्ग मन ध र्ये ॥२॥ पंच सडसहने दश वली, सीत्तर नव पणवी श ॥ बार अडवीश लोगस्स तणो, काउस्सग्ग धरो गुणीश ॥२॥ विश सत्तर गवन, छादश ने पंच ॥ एणी परें काउस्सग्ग जो करे, तो जाये नव संच ॥३॥ अनुक्रमें काउस्सग्ग मन धरो, गुणी लेजो वीश ॥ विश थानक एम जाणीयें, संक्षेपथी लेश ॥४॥ नाव धरी मनमा घणो ए, जो एक पद