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________________ प्रथमपरिच्छेद. ११ ॥ ३० ॥ इति श्रीस्तंभनक तीर्थराज श्रीपार्श्व नाथस्तवनम् ॥ ॥ पीछें जय महायस कहे, सो लिखते है | ॥ अथ जय महायस प्रारंभः ॥ ॥ जय महायस जय महायस जय महाजा ग जय चिंतिय सुद फलय ॥ जय समच्च परम व जाणय, जय जय गुरु गरिम गुरु ॥ जय 5 दत्त सत्ताण ताणय, यंत्रणयविय पास जिए ॥ जवियद जीम बुलु, जव अवता ांत गुण तुक त्तिसंक नमो ॥ १ ॥ इति ॥ अथ सदाकालका अवश्य कर्तव्य सामायक पडिकमणा शास्त्रानुसारे विधि लि० ॥ ॥ प्रणम्य श्री जिनाधीशं सद्गुरुं च विशेषत श्रामादोरात्रकृत्यानि लिख्यन्ते लोक भाषया ॥ १ ॥ ॥ श्रावक दोय घडी रात्र रह्या पोशद शा लाये (अथवा ) गुरुकने अथवा घरने एक प्र देशे (यावी ) प्रथम दिवस संध्याये पहिले ह्या वस्त्र पहिरी (जो ) गुरुनो जोग न हुवे (तो) आप प्रमार्जित थानकै खमासमणपूर्वक तीन
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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