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________________ १२० जैनधर्मसिंधु. नवकार गुणी थापनाजी यापै (पबै) खमासमण देई काकारेण संदिस्सद जगवनसामाय कमुहपत्ती पडिलेढुं ( गुरु कदै पलेह) पबे वं कदी, दूजी खमासमण देई मुहपत्ती पडिले जो होय खमा० कदै ॥ इच्छा० सं ॥ ज० सामायक संदिस्साकं ( गुरुकदै संदिस्सावेद ) पबै इवं कदी, वलेख० देने कहें इवाका० सं ज० ॥ सामायिक ठाउँ ( गुरु कदै वाएद ) इचं कदी खमासमण देई वितकाय जो रही तीन नवकार गुणी कदै इकार भगवन पसा व करी सामायक दंड उच्चरावोजी ( गुरु कदै उचरावे मो) पबै करेमि ते सामाइयं (इत्यादि) सामायक सूत्र गुरु वचन अनुभाषण करतो थको तीन वार उच्च खमासमण देई ॥ इचा० सं० ० इरियावदियं पडिक्कमामि ( गुरु क पक्किम है ) पबै इवं कदी || इच्छामि पडिक मिनं इरियावदिया ( इत्यादि पाठ करे ) इ रियावदी पडिक्कमि ॥ एक लोगस्सनो काउसग्ग करी णमो अरिहताणं कही कानसग्ग पारीमुखे प्रगट लोगस्स कही खमा० देई ॥ इच्चा० सं०
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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