SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ जैनधर्मसिंधु. गड ||२५|| अहम विजुग्गय विसेस कि विमस्म दिदीह, जं पास विजवयारुकरइ तुदनाहसम ग्गह ॥ सुच्चिच् किल कल्लाजेण जिण तुम्ह प सीयद, किं तंचेव देव मामइवही रह ॥ २६ ॥ तुह पच नहु होइ विद्दल जिजा न किं पु, दनुं इस्किन निरुसत्तचत्तक्कन जस्सु यमण ॥ तं ममन निमिसे ए एडविन ल नइ, सच्चं जं जुकियवसेण किं नंबरु पञ्चइ ॥ ॥ २७ ॥ तिहुसामिच्य पासनाह मई अप्पप यासिन, किन जं नियरूवसरिसुनमकुंव हुजंपि उ ॥ अस्मा जिणजगतुदसमो विद किस्मदयास , जइ अवगिल सि तुं दिजप्रकिंदोइसढ्या सन ॥ २८ ॥ जइ तुहरू वि कि विपेच्य पाइणवे लविन, तनजापुंजिए पास तुह्मदच्छंगी करिच्य न ॥ इयमदवि जं न होइ सातुहर्जदावण, रकंतद नियकित्तिणेयजुवहीर ॥२॥ एवमदारिदजत्तदेवश्यन्दवणमसन, जं प्रण लिय गुणगहण तुझ मुजि णिसि इन ॥ इय मई पसिय सुपासनादयंत्रणयपुरठि, इय मुणिवर सिरि जयदेव विस्मवर प्रणिदि ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy