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________________ १०५ जैनधर्मसिंधु सहि नमो गमासमणाणं कही नमोऽर्हत्ण्कही योपी विशाललोचन, नमुबुणं, अरिहंत चे श्याणं, कही एक नवकारनो कानस्सग्ग पारी नमोऽर्दत्०कही कल्लाणकंदनी प्रथम थोय क देवी पनी लोगस्सा पुरकरवरदी, सिक्षणं बु हाणं, कही अनुक्रमें चार थोयो कदीयें बैयें, तिहां सुधी सर्व कहे, ॥ परी नमुबुणं कहीन गवान् आदि चारने चार खमासमणे वांदवा॥ पनी जमणो दाथ उपधि ऊपर थापी "अट्ठाइ जोसु कहेवू ॥ पी ईशान खुणानी सन्मुख श्रीसीमंधरस्वामी- चैत्यवंदन, स्तवन, जयवी यराय, कास्सग्ग थोय पर्यंत कहीयें, तिहां सुधी सर्व करवू ॥पनी खमासमण देई श्रीसि हाचलजीनु चैत्यवंदन, स्तवन, जयवीयराय, कानस्सग्ग थोय पर्यंत कदीयें बैयें, तिहां सुधी सर्व करवू ॥ पी सामायिक पारवाना विधिनी रीतें सामायिक पारवा सुधीनो सर्व विधि करवो॥ इति राश्प्रतिक्रमणविधिः समाप्तः॥२०॥ ॥अथ परिक प्रतिक्रमण विधि ॥ ॥प्रथम दैवसिकप्रतिक्रमणमां वंदित्तु कही
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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