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________________ प्रथमपरिछेद. १०१ लोएमि जो मे राल अश्रो कजे कही “सातलाख" नो पाठ कही, अढार पापस्था नक आलोई सबस्सवि राश्यंनो पाठ कदेवो ॥ पठी बेशीने जमणो ढींचण कन्नोराखी एक न वकार गणी करेमि नंतेश्बामि पमिकमिक हीवंदितासूत्र संपूर्ण कहो बे वार वांदणां देवा. वली अनूहिउहं अग्निंतर राश्यं खामीने फरी बे वार वांदणां दैवा ॥ परी कना थईने आय रियनवजाए करेमि नंतेश्वामिछामि कालस्स ग्गं जोमे राईकही तस्सउत्तरीकही तपचिं तामणि करतां न आवमे तो चार लोगस्स अ थवा शोल नवकरनो कानस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कही हा आवश्यकनी मुहपत्ति पडि खेदीने वांदणां बे वार देवां ॥ पी सकल तीर्थ वंदन करीने यथाशक्तियें पच्चरकाण करवू ॥प जीगकारेण संदिसह नगवन् सामायिक, चन विसगे, वंदनक, पमिकमण, कानस्सग्ग, पच्च काण कयुं जी एम आवश्यक संजारवां ॥ पनी पच्चरकाण कां होय तो कांजी, धातूं दोय तो धातूं जी, कदेवू ॥पनी इगमोअणु
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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