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________________ इस बंद पड़े जिनालय के पट खोले हैं। अतः मैं आपको प्रसन्न होकर शत्रु विघातनी नाम की एक विशाल गदा प्रदान करता हूँ। उसने रत्नों की वर्षा भी की तथा वस्त्राभूषणों से पांडवों का स्वागत किया। उसने पांडवों को उत्तम विद्यायें भी प्रदान की। तब विपुलोदर भीम के साथ पांडवों ने सुखपूर्वक वहां कुछ दिन व्यतीत किये। युधिष्ठिर ने मणिभद्र देव से जब पूछा कि आपने ये गदा भीम को ही क्यों दी। तब मणिभद्र देव ने बतलाया कि विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में रथनुपूर नगर नरेश मेघवाहन थे, उनकी धर्मप्रिया पत्नी का नाम प्रीतिमती था, इनके अघवाहन नाम का पुत्र भी था। एक बार नरेश मेघवाहन ने गदा प्राप्ति की इच्छा से विंध्या पर्वत पर साधना की। साधना सफल होने पर इन्हें गदा की प्राप्ति हो गई। तभी मेघवाहन ने आकाश मार्ग से देवों को कहीं जाते देखा व उनसे पूछा, आप सब देवता कहां जा रहे हैं। तब उन्होंने कहा कि इसी पर्वत पर क्षमाधर महाराज को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है अतः उनके केवलज्ञान उत्सव को मनाने व उनकी देशना सुनने जा रहे हैं। तब मेघवाहन भी गदा के साथ वहां जा पहुँचा व उनकी दिव्य ध्वनि सुनकर विरागी होकर अपने पुत्र अघवाहन को राज्य सौंपकर दीक्षा हेतु जाने लगा। तब गदा के कहने पर कि अब मेरा क्या होगा। मैं तो अपने स्थान से च्यूत होकर आपके पास आई थी। तब उन्हीं योगीराज ने गदा से कहा कि यहीं पांडु पुत्र भीम आवेंगे। वे मंदिर के बंद कपाट खोलेंगे, उन्हीं के पास आप रहना। मणिभद्र देव बोले-तभी से मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर इस गदा की रक्षा कर रहा हूँ। अब भीम ने चूंकि बंद कपाट खोले थे, अतः वे ही इस गदा के पात्र हैं। ऐसा कहकर मणिभद्र देव वहां से अपने स्थान को चला गया। इसके बाद पांडव माता कुन्ती के साथ दक्षिणात्य प्रदेशों में विहार करते हुए हस्तिनापुर को लक्ष्य कर लौटे व माकंदी नाम की नगरी पहुँचे। यहां फिर वे एक कुम्हार के घर रूके। इस नगरी के राजा द्रुपद थे। इनकी धर्मपरायणा महारानी का संक्षिप्त जैन महाभारत.91
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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