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________________ भीम की इन शर्तों को स्वीकार कर लिया। तब भीम ने राजा बक को प्राणदान दे दिया। इस घटना से नगर की प्रजा अति प्रसन्न हो गई व भीम को गजराज पर बिठाकर प्रजा ने उसको सम्मान दिया। पांडवों ने यहीं रुककर अपना वर्षाकाल पूर्ण किया। बाद में वे सभी वहां से विहार कर गये। विहार कर वे सभी चंपापुरी नगरी पहुँचे। इस नगरी का राजा कर्ण था। पांडव वहां एक कुम्हार के घर रूके। एक दिन राजा कर्ण का एक हाथी उन्मत्त होकर बस्ती में घुसकर विनाश करने लगा। भीम ने उस बिगडैल हाथी को शीघ्र ही वश में कर लिया। यहां से सभी पांडव गमन कर वैदेशिकपुर नगर पहुचें। यहां का राजा वृषध्वज था। उसकी महारानी का नाम दिशावली था। दिशानंदी उसकी अति गुणवान व रूपवान कन्या थी। एक दिन जब भीम भोजन सामग्री एकत्र करने महल के पास से गुजरे, तो राजपुत्री उसे देखकर मोहित हो गई। राजा को विदित होने पर उन्होंने भीम को महलों में बुला लिया। राजा ने उस ब्राह्मण को भिक्षार्थी समझकर अपनी कन्या उसे दान में देनी चाही, पर भीम के यह कहने पर कि इस विषय में मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। मेरे अभिभावक व अग्रज की आज्ञा के बिना मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता। तब भीम के ऐसा कहने पर राजा पांडवों के निवास पर गये व उन्हें अपने महलों में आमंत्रित कर उन सभी का सत्कार किया व भोजन कराया। इसके बाद राजा ने अपनी अभिलाषा प्रकट की। जिसे माता कुन्ती व युधिष्ठिर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया व भीम के साथ दिशानंदी का विवाह सम्पन्न करा दिया। इसके बाद सभी पांडव माता कुन्ती के साथ वहां से चलकर नर्मदा नदी को पार कर विंध्याचल पर्वत के शिखर पर स्थित जिनालय पहुँचे। यहां भीम ने जिनालय के पट खोले व सभी ने मंदिर में विधिपूर्वक पूजा अर्चना की। तभी मणिभद्र नाम के देव वहां पहुँचे व बोले-एक योगीराज ने भविष्यवाणी की थी कि जो कोई इस जिनालय के बंद पट खेलेगा, वह परम प्रतापी व पराक्रमी महापुरुष होगा। आपने 90 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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