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________________ आप पुन्नाट संघ के थे। पुन्नाट कर्नाटक का प्राचीन नाम है। इस हरिवंश पुराण में प्रधानतः 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के चरित्र का वर्णन है। यह तथ्य प्रत्येक सर्ग के अंत में लिखे 'इति अरिष्टनेमि पुराण संग्रह' से सिद्ध है। इस प्रति को भारतीय ज्ञानपीठ के सौजन्य से जैन साहित्य सदन, लाल मंदिर, चांदनी चौक दिल्ली से प्रकाशित किया गया है। इस ग्रंथ में आठ अधिकार हैं- 1. लोक के आकार का वर्णन, 2. राजवंशों की उत्पत्ति, 3. हरिवंश का अवतार, 4. वसुदेव की चेष्टाओं का कथन, 5. नेमिनाथ चरित्र, 6. द्वारिका निर्माण, 7. युद्ध का वर्णन एवं 8. नेमिनाथ भगवान का निर्वाण। __ ग्रंथानुसार राजगृही नगरी को यहां स्थित पांच पर्वतों के कारण पंचशैलपुर भी कहा जाता है। इस नगरी के पूर्व में ऋषि गिरि, दक्षिण में तिकोने आकार के वैभार व विपुलाचल पर्वत, दक्षिण-पश्चिम में वलाहक पर्वत जो डोरी सहित धनुषाकार पर्वत है, तथा उत्तर-पूर्व दिशा में पाण्डुक पर्वत स्थित है, जो गोलाकार है। श्री वासुपूज्य तीर्थंकर को छोड़कर शेष सभी तीर्थंकरों के समवशरण इस नगरी के पर्वतों पर आये थे, जिससे ये सभी पर्वत अत्यन्त पवित्र हैं। यह नगरी तीर्थंकर श्री मुनिसुब्रतनाथ की जन्मभूमि भी है। ग्रंथानुसार एक बार भगवान महावीर स्वामी के राजगृही पर्वत पर आये समवशरण में वहां के राजा श्रेणिक ने गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम से हरिवंश के बारे में जानने की जिज्ञासा प्रकट की थी-तब भगवान ने अपनी दिव्य देशना के माध्यम से हरिवंश के बारे में बतलाया था, जिसे श्री गौतम गणधर ने राजा श्रेणिक को विस्तार से हरिवंश के बारे में उनकी जिज्ञासा को शांत किया था। ___ तीसरा पुराण उत्तर पुराण है; जिसे आचार्य श्री गुणभद्र स्वामी ने लिखा है। ये आचार्य श्री जिनसेन स्वामी के शिष्य थे। इस पुराण के लेखन का काल 897 ईस्वी है। इस पुराण में हरिवंश, कुरूवंश एवं यदुवंशों का विवरण निहित है। इन वंशों की वंशावली प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव के संक्षिप्त जैन महाभारत -7
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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