SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुछ समय बाद से प्रारंभ होती है, जो अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के काल तक चलती है। इन वंशों में कौन-कौन से महापुरुष-तीर्थंकर, चक्रवर्ती, अर्धचक्री, बलभद्र, नारायण एवं प्रतिनारायण हुए, उनका विवरण भी इन वंशों के प्रमुख नरेशों के साथ दिया गया है। कौरव एवं पाण्डव भाई-भाई थे; किन्तु राज्य-लिप्सा के मोह ने कौरवों को किस प्रकार अंधा बना दिया। उन्होंने पाण्डवों का भी राज्य हस्तगत करने के लिये कौन-कौन से हथकंडे अपनाये। उसका विवरण भी इस पुस्तक में देने का प्रयास किया गया है। पाण्डवों ने किस प्रकार धर्मबुद्धि पूर्वक कौरवों के अत्याचारों को सहन किया एवं अपनी बात एवं सत्य पर कायम रहकर जंगलों व नगरों में भटक-भटक कर किस प्रकार अनेक दु:ख खुशी-खुशी सहन किये, इस बात को भी पुस्तक में रखने का प्रयास किया गया है। अंत में जब कौरवों की ओर से अति हो गई तो किस बहादुरी के साथ पाण्डवों ने कौरवों व उनके पक्ष की विशाल सेनाओं का सामना कर उन्हें विश्व के सबसे बड़े युद्ध में कैसे पराजित किया, उस युद्ध का विवरण भी विस्तार से इस पुस्तक में दिया गया है। इसके अलावा इस पुस्तक में उपरोक्त वंशों में उत्पन्न हुए तीर्थंकरों-भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, मुनिसुव्रतनाथ एवं नेमिनाथ इत्यादि के जीवन के बारे में भी विशिष्ट सामग्री की प्रस्तुति देने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में कुछ प्रमुख पात्रों एवं स्त्री-पुरुष क्रीड़ा के आठ रूपों का वर्णन भी है- भुजाओं का गाढ़-आलिंगन, चुम्बन, चूसण, दंशण, कण्ठ ग्रहण, केशग्रहण, नितम्ब स्फालन व अंग-प्रत्यंग का स्पर्श। इसमें गांगेय/भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण, युधिष्ठिर, भीम एवं अर्जुन के जीवन चरित्र पर तो प्रकाश डाला ही गया है, साथ ही नारायण श्रीकृष्ण एवं बलभद्र बलदेव के चरित्र को भी ग्रंथों के आधार पर चित्रित करने का भरपूर प्रयास किया गया है। 8- संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy