SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनवरत चलता रहा। युधिष्ठिर व शल्य के बीच युद्ध चल रहा था। अंत में युधिष्ठिर शल्य के मस्तक को धड़ से विच्छिन्न करने में समर्थ हुए। उधर अर्जुन ने भी कई प्रख्यात योद्धा राजाओं को निहत कर दिया। अब यह भीषण युद्ध अहर्निश चलने लगा। जब किसी को निद्रा की प्रबल इच्छा होती, तो वह कुछ क्षण के लिए तन्द्रालु होकर विश्राम करके लौट आना। इस प्रकार युद्ध प्रारंभ हुए सत्रह दिवस व्यतीत हो गये। युद्ध का अठारहवां दिन प्रारंभ होने पर पुनः दोनों पक्षों में घमासान युद्ध प्रारंभ हो गया। इस बार दोनों पक्षों की सेनाओं में मकर व्यूह की रचना हुई। खड़ग चमकने लगे, नरसंहार होने लगा। सारा युद्ध-स्थल रक्तरंजित हो रहा था। इसी समय भीम अपने रथ पर सवार होकर आया व कौरव सेना का विध्वंस करने लगा। एक ओर अर्जुन व कर्ण के बीच युद्ध चल रहा था। जहां अर्जुन ने कर्ण के धनुष को भंग कर दिया था। कर्ण भी कम नहीं था। अतः उसने भी पूर्ण शक्ति से अर्जुन का प्रतिरोध किया एवं उसके छत्र को नष्ट कर दिया। तभी अर्जुन ने कर्ण से कहा कि तुम कुन्ती पुत्र होने के नाते मेरे ज्येष्ठ भ्राता हो, इस तथ्य को समस्त संसार जानता है। लेकिन युद्ध में परस्पर सहोदर का कोई संबंध नहीं होता। अतः अब तुम धैर्य पूर्वक मेरे भीषण प्रहारों का प्रतिरोध करो। मैंने इसके पूर्व तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाई किन्तु आज मैं तुम्हें निष्कृति नहीं दूंगा। इसीलिए या तो युद्ध के लिए प्रस्तुत हो जाओ, नहीं तो रणक्षेत्र को त्याग कर पृष्ठ प्रदर्शन करो। तब कर्ण ने भी पार्थ को ऐसा ही कटु उत्तर दिया व कहा कि स्वयं अपने मुख से अपना गुणगान क्या शोभनीय है। क्यों व्यर्थ विवाद कर रहे हो। अब मेरे कठोर प्रहारों को सहन करने के लिए प्रस्तुत हो जाओ। इसी समय श्रीकृष्ण ने कर्ण को आकर सूचना दी कि उसका पुत्र विश्वसेन यमपुर को प्रस्थान कर गया है। इस दुखद समाचार को सुनते ही कर्ण शोकाकुल हो उठा व 144 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy