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________________ दृष्टद्युम्न पर शक्ति बाण का निक्षेपण किया जिसे उसने रास्ते में ही नष्ट कर दिया। इधर ये लोग युद्धरत थे, वहां दूसरी ओर भीम अपनी विशाल गदा के प्रहार से शत्रु सेना का संहार कर रहा था। उसने युद्ध में शीघ्र ही कलिंग पुत्र का संहार कर दिया। असंख्य सैनिकों के साथ भीम ने शतक रथों को व हजारों हाथियों को भी विनष्ट कर दिया। उधर द्रोणाचार्य ने भी दृष्टद्युम्न के खड़ग को तोड़ डाला तो वहीं अभिमन्यु ने भी द्रोणाचार्य के रथ को नष्ट कर दिया। तभी सहसा दुर्योधन का पुत्र सुलक्षण युद्ध क्षेत्र में अवतीर्ण हुआ व उसने अभिमन्यु के धनुष को खंडित कर दिया। तभी अभिमन्यु ने दूसरा धनुष लेकर युद्ध करना प्रारंभ कर दिया । किन्तु उसी समय हजारों युगपत वीरों ने अभिमन्यु को चतुर्दिशाओं से आवेष्ठित कर लिया, मानों ऐकाकी सिंह शावक को हाथियों के समूह ने वेष्ठित कर लिया हो। किन्तु तभी गांडीवधारी अर्जुन वहां पहुँच गये एवं उन्होंने अपने भीषण प्रहारों के द्वारा सब वीरों को छत्र भंग कर दिया। अभिमन्यु अब स्वच्छंद होकर पुनः युद्ध करने लगा। इसी प्रकार 9 दिवस तक युद्ध चलता रहा। नवमें दिवस के आगमन पर दृष्टद्युम्न ने युद्ध के लिए पितामह भीष्म का आह्वान किया। तभी अर्जुन ने अपना एक अद्भुत बाण शिखंडी को देते हुए कहा कि लो, मेरे इस बाण से तुम शत्रुओं का नाश करो। इस बाण में अनेक प्रकार की अद्भुत शक्तियां निहित हैं। शिखंडी उस बाण को लेकर युद्ध करने लगा। दोनों ओर से घमासान युद्ध हुआ; परन्तु फिर भी किसी की जय-पराजय का निर्णय नहीं हो सका। यह देखकर दृष्टद्युम्न ने शिखंडी से कहा कि यद्यपि तुमने विकट रूप से युद्ध किया है; पर तुम पितामह भीष्म का कुछ भी अनिष्ट नहीं कर पाये। ऐसे युद्ध से क्या लाभ? अब मैं तुम्हारी सहायता के लिए आ गया हूँ । राजा विराट भी तुम्हारी सहायता के लिए तत्पर हैं। यह सुनकर शिखंडी द्विगुणित साहस के साथ युद्ध करने लगा। जिस प्रकार मेघमंडल से व्योम व्याप्त हो जाता है; उसी प्रकार शिखंडी ने पितामह को 130 ■ संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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