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________________ के लिए आया व आते ही उसने शल्य की ध्वजा, छत्र एवं उसके अस्त्र-शस्त्रों को खंड-विखंड कर शल्य को पृथ्वी पर गिरा दिया। यह देखकर कुपित पितामह भीष्म श्वेत कुमार की ओर अग्रसर हुए। श्वेत कुमार ने भीष्म पितामह को युद्ध से विरत करने के अनेक प्रयास किये, पर जब वे रंचमात्र भी अप्रतिहत न हो सके, तब बाध्य होकर श्वेत कुमार ने उग्र बाण वर्षा से उन्हें पूर्णतः आच्छादित कर दिया। पितामह भीष्म को भयंकर आपत्ति में निबद्ध देखकर दुर्योधन चीत्कार करता हुआ श्वेत कुमार के पीछे दौड़ा। किन्तु तभी जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि को वारिद शांत कर देता है, उसी प्रकार अर्जुन ने दुर्योधन को अग्रसर होने से रोककर तटस्थ कर दिया। दुर्योधन के सभी प्रयास विफल हो गये। वह अग्रसर न हो सका। तभी अर्जुन ने अपना गांडीव संभाला एवं दुर्योधन को बाणों से आच्छादित कर दिया। परन्तु दुर्योधन को इससे कोई हानि नहीं हुई। इधर अर्जुन व दुर्योधन के बीच युद्ध चल रहा था। उधर श्वेत कुमार भीष्म पितामह के साथ युद्ध कर रहा था। श्वेत कुमार ने भीष्म पितामह के धनुष, ध्वजा, छत्र आदि छिन्न-भिन्न कर दिये व उनके वक्षस्थल पर खड़ग से भीषण प्रहार किया। जिससे संपूर्ण कौरव सेना में कोलाहल मच गया। इसी समय आकाशवाणी हुई-हे भीष्म पितामह! धैर्य धारण करो, कातर मत हो। वीरतापूर्वक युद्ध कर वीर योद्धाओं का संहार करो-भीरू होने की आपको कोई आवश्यकता नहीं है। आकाशवाणी को सुनकर भीष्म पितामह ने स्थिर चित्त होकर सतर्कता पूर्वक अपने धनुष बाण को धारण कर एक साथ उन्होंने सैंकड़ों बाणों का प्रहार किया। जिससे श्वेत कुमार सदा के लिए धराशायी हो गया। किन्तु वीरोचित्त मृत्यु प्राप्त कर वह स्वर्ग लोग में देव हुआ। कुछ ही क्षण के पश्चात् सूर्यास्त होने पर युद्ध रोक दिया गया। दोनों पक्ष के सैनिक अपने-अपने स्कंधावरों में जाकर विश्राम करने लगे। जब राजा विराट को अपने पुत्र के युद्ध में मारे जाने का पता चला तो उन्होंने पांडवों से कहा कि आप जैसे महारथियों के 128 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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