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________________ युद्ध-स्थल में पहुँचकर अर्जुन ने अपने सारथी से विरोधी योद्धाओं का परिचय करवाने को कहा। तब सारथी ने अर्जुन को बतलाया कि हे वीरवर-ताल की ध्वजा वाले रथ में पितामह भीष्म विराजमान हैं। उनके रथ में श्रीकृष्ण वर्ण के घोड़े जुते हुए हैं। रक्त वर्ण के अश्वों से युक्त रथ द्रोणाचार्य का है जिसमें कलश चिन्हांकित ध्वजा लगी है। दुर्योधन के रथ में नीले वर्ण के अश्व जुते हुए हैं। उनके रथ पर नागध्वजा पवन से स्पर्धा कर रही है। दुःशासन का रथ पीत वर्ण के अश्वों से चालित है। इस रथ पर जाल की ध्वजा है। अश्वत्थामा के रथ में श्वेत वर्ण के अश्व रथ को खींचेंगे; इनकी ध्वजा में वानर चिन्ह अंकित है। रक्त वर्ण के अश्वों वाला रथ शल्य का है। इस रथ में सीता चिन्ह की ध्वजा लगी है। जयद्रथ नरेश का रथ भी रक्त वर्ण के अश्वों वाला है; किन्तु उनकी ध्वजा में कोल चिन्ह अंकित है। इस प्रकार परिचय प्राप्त करने के बाद अर्जुन स्वयं युद्ध हेतु रणांगण के मध्य में जा पहुंचा। उधर से भीष्म पितामह आ गये। भीष्म पितामह ने आते ही अभिमन्यु पर आक्रमण कर दिया। पर अभिमन्यु ने भी शीघ्र ही भीष्म पितामह की ध्वजा को छिन्न-भिन्न कर दिया। बदले में भीष्म पितामह ने भी अभिमन्यु के रथ की ध्वजा को काट दिया। अपनी ध्वजा को कटा देखकर अभिमन्यु ने भीष्म पितामह के सारथी की दोनों भुजाओं को शर से बिद्ध कर दिया। इस घटना को देखकर उपस्थित लोग आश्चर्य में पड़कर कहने लगे कि वीर अर्जुन का पुत्र अपने पिता से किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। बाद में अभिमन्यु ने जब शताधिक वीर योद्धाओं को परास्त कर दिया, तो उसके भय से कौरव सेना में विच्छृखलता उत्पन्न हो गई। उधर अर्जुन के सहचर उत्तर कुमार ने शल्य को संग्राम के लिए ललकारा, पर शल्य ने शीघ्र ही उत्तर कुमार का छत्र भंग कर दिया। उत्तर कुमार भी अन्यान्य बाणों से बिद्ध होकर वहीं गिर पड़ा। अपने ज्येष्ठ भ्राता की यह दुर्गति देखकर राजा विराट का कनिष्ठ पुत्र श्वेत कुमार त्वरित गति से युद्ध संक्षिप्त जैन महाभारत - 127
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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