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________________ होकर प्रद्युम्न कनकमाला से बोला- पहले आपने सुझे अटवी से लाकर मेरी रक्षा की, अतः प्राण दान दिया। बाद में पालन-पोषण कर बड़ा किया व अभी-अभी आपने मुझे विद्या दान भी दिया है। यह कहकर प्रद्युम्न ने कनकमाला की प्रदक्षिणा लगाई व उसके सामने हाथ जोड़ कर खड़ा होकर बोला कि यह दान देने से आप मेरी गुरु माता हैं। पुत्र के लिए जो उचित आज्ञा हो वह मुझे दीजिए। यह सुनकर कनकमाला सन्न रह गईं। तब प्रद्युम्न वहां से चला गया। प्रद्युम्न के चले जाने के बाद कनकमाला यह सोच कर कि मैं छली गई हूँ, उसने क्रोध से अपना वक्ष-स्तन आदि को नखों से खरोंच डाला व अपने पति के पास चली गई और बोली कि देखो प्रद्युम्न ने मेरा क्या हाल किया है। अपनी पत्नी की बातों को सच्चा मान कर कालसंवर ने अपने 500 पुत्रों को बुलाकर कहा कि किसी भी प्रकार प्रद्युम्न को मार डाला जाय। इसके बाद दूसरे दिन ये पापी कुमार प्रद्युम्न को मारने हेतु कालाम्बु नाम की वापिका पर ले गये व प्रद्युम्न से जल क्रीड़ा हेतु कहने लगे। उसी समय प्रज्ञप्ति विद्या ने प्रद्युम्न को सब कुछ बतला दिया। तब प्रद्युम्न ने अपने मूल शरीर को कहीं छिपा दिया व कृत्रिम शरीर से उस वापिका में कूद गया। बाद में प्रद्युम्न ने माया से एक को छोड़कर शेष सभी कुमारों को ऊपर पैर व नीचे मुख कर कील दिया व शेष एक बचे कुमार को पांच चोटियों का धारक बनाकर कालसंवर के पास खबर देने हेतु भेज दिया। यह सुनकर क्रोध से लाल होकर कालसंवर अपनी समस्त सेना के साथ प्रद्युम्न के पास आया, पर प्रद्युम्न ने भी मायावी.सेना बना कर उससे युद्ध कर कालसंवर को युद्ध में परास्त कर दिया। तब कालसंवर कनकमाला के पास प्रज्ञप्ति विद्या मांगने गया। यह सुनकर कनकमाला बोली कि मैं तो वाल्यकाल में ही दूध के साथ यह विद्या प्रद्युम्न को दे चुकी हूँ। तब कालसंवर पुनः प्रद्युम्न से लड़ने वहां पहुँचा, पर प्रद्युम्न ने शीघ्र ही उसे बांध कर एक शिला तल पर रख दिया। संक्षिप्त जैन महाभारत. 109
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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