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________________ तभी नारद वहां पहुंच गये। नारद ने कालसंवर को कनकमाला के बारे में बतलाया कि उसने स्वयं ही अपना वक्ष आदि अपने ही नखों से खरोंच लिया था। क्योंकि प्रद्युम्न ने उसे चाहने से मना कर दिया था व उसे माता कहा था। बाद में प्रद्युम्न ने नारद का सम्मान किया व कालसंवर को छोड़ कर कहा कि माता कनकमाला ने जो भी किया है; वह पूर्व कर्म के वशीभूत होकर किया है। अतः उसे आप क्षमा करें। उसने कालसंवर के 500 पुत्रों को भी छोड़ दिया। तभी नारद के बतलाने पर कि कृष्ण व रूक्मणी तेरे माता-पिता हैं; उनके दर्शन के लिए पिता कालसंवर से आज्ञा मांगी। तब नारद व प्रद्युम्न द्वारिका को चल दिये। रास्ते में हस्तिनापुर के आगे उन्हें एक बड़ी सेना जाते हुए दिखाई दी। इसे देखकर प्रद्युम्न ने नारद से पूछा कि ये सेना कहां जा रही है। तब नारद ने कहा कि एक बार हस्तिनापुर नरेश दुर्योधन ने कृष्ण से प्रतिज्ञा की थी कि यदि मेरे कन्या व तुम्हारे पुत्र हो, तो मैं आपके अग्रज पुत्र को अपनी कन्या दे दूंगा। इसके बाद कृष्ण की दोनों रानियों-रूक्मणी व सत्यभामा के एक साथ ही पुत्र उत्पन्न हुए। रूक्मणी के तुम और सत्यभामा के भानुकुमार। तब कृष्ण ने सबसे पहले तुम्हारे जन्म का समाचार जानकर तुम्हें अग्रज व भानुकुमार को अनुज घोषित किया था। अकस्मात् धूमकेतु नामक असुर तुम्हारा हरण कर ले गया और तुम्हें अटवी में पत्थर के नीचे रख कर भाग गया। जहां से कालसंवर अपने परिवार के साथ विमान में बैठकर गुजर रहा था। जब उसने विमान से उस शिला को हिलते देखा तो वह नीचे उतरा, जब उसने शिला को उठाकर देखा तो तुम्हें उठाकर अपने साथ ले गया और तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया। तुम्हारे हरण के पश्चात् रूक्मणी काफी दु:खी हुई व आपका भी कोई समाचार नहीं मिला; तब मैंने ही रूक्मणी को बतलाया था कि आपका पुत्र अनेक ऋद्धियों सिद्धियों के साथ 16 वर्ष के बाद स्वतः आपके पास आवेगा। दुर्योधन ने 110 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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