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________________ किया जा रहा है। जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान, योग आदि के कई पाठ्यक्रम और परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है। सन् १९४६ में साहित्य प्रकाशन हेतु आपके निर्देशन में आदर्श साहित्य संघ की स्थापना की गई। यह विज्ञप्ति के प्रकाशन, पत्राचार, अणुव्रत यात्रा, अणुव्रत प्रसार आदि कार्यो में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साहित्य की धारा अबाध गति से बहती रहे इसके लिए तरंगीनी, पराग, जैन भारती, अणुव्रत, तुलसी प्रज्ञा, प्रेक्षाध्यान जैसे कई जर्नल एवं पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन आपके मार्गदर्शन में हुआ तथा आज भी अविराम गति से हो रहा है। स्यादवाद आपका मान्य सिद्धान्त था । यही कारण है कि अन्य सम्प्रदायो में आपने समन्वय के तत्त्व ही देखे, न कि विरोधी तत्त्व। आप अपने प्रवचन की शुरूआत भी प्रायः समन्वयकारी श्लोक से ही करते थे। जैन एकता के संदर्भ में 'समण सुत्तं' के निर्माण में आपका एवं आपके शिष्यों का विशेष प्रयास रहा है। आपकी साहित्य रचना के अलग-अलग युग रहे है। एक युग में आपने जैन सिद्धान्त दीपिका जैसे तत्त्वज्ञान के ग्रंथों की रचना की। एक युग में 'मनोनुशासनम्' जैसे योग ग्रंथों का प्रणयन किया, एक युग में पंचसूत्रम जैसे अनुशासन ग्रंथ, तो एक युग में जीवन वृत्तों की रचना की । जीवन की सान्ध्य वेला में 'आचार- बोध', 'संस्कार-बोध', 'व्यवहार-बोध', 'तेरापंथ प्रबोध' और 'श्रावक संबोध' जैसे अनुभव एवं ज्ञान आधारित ग्रंथों का प्रणयन कर एक नये दौर का प्रारम्भ कर दिया। आपके अभूतपूर्व साहित्यिक अवदान के पीछे आपका वहुआयामी व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व था । इस शब्दातीत बहुलता का कारण है आपकी अद्भूत कल्पना शक्ति, अपूर्व स्मरण शक्ति, अपूर्व ग्रहण शक्ति, शुभ संकल्प, शिवंकर शक्ति, अमाप्य करुणा, अदम्य-पुरुषार्थ, अपराजेय मनोवृत्ति एवं अनुशासन । अपने इन गुणों से स्वयं तो आलोकित हुए ही, नभ, धरा, दिगन्त को भी अलोकित कर दिया। आपका जीवन मानवता की गाथा, सत्य-अहिंसा का संगान तथा अपरिग्रह और नैतिकता का आख्यान वन गया है। आप जैसे अशेष पुरुष ने जीवन में कुछ भी शेष नहीं छोड़ा है। 'तुम अमृत के रूप, कर दिया तुमने क्षर को अक्षर धन्य हो गया तुम्हे प्रकट कर यह भव का रत्नाकर।' श्रीमती विजयालक्ष्मी मुंशी १०९, कानुनगों का नोहरा, सूरजपोल अन्दर, उदयपुर (राज.) मो. ९४१३७६३९२८ ૨૦૦ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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