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________________ ( सिरि भूवलय के कारण निंदा की। ग्रंथ में अतिश्योक्ति है ऐसा माने तो भी घटनाओं के क्रम को जड सहित उखाडा नहीं जा सकता। निग्गंठनाथ पुत्त, शिशु वैद्य “जीवक" के साथ "श्रावण्य फल सूत्र'' तथा “तत्व शास्त्र'' के विषय में बुद्ध को कुछ निरुपित करते हैं, यह निग्गंठनाथ पुत्त के अंतिम दिनो के तुच्छ जीवन का उदाहरण है, ऐसा महवीर काल निर्णय के संदर्भ में बौद्ध साहित्य में शरण लेने वालों व्यक्तव्य है। यह व्यक्तव्य जैन मत के किसी विभाग में स्पष्ट होता होगा यह हम जैनेतरो को ज्ञात नहीं है। इस चर्चा को आगे बढाने में हमें कोई रूचि नहीं है । इस संदर्भ में कुमुदेन्दु के इस कथन को कहते हैं साविरदोन्दुवरे वर्षगळिन्दा । श्री वीर देवनिवंदा।। पावन सिध्दांत चक्रेश्वरागी। केवलीगळपरंपरेइं ॥ (३) डेढ हजार वर्षों से । श्री वीर देव से आए। पावन सिद्धांत चक्रेश्वर बन। केवलीयों के परंपरा द्वारा । हूविनायुर्वेददोळु महावत मार्ग। काव्यवु सुखदायक वेन।। दा व्यक्तदभ्युदयवन श्रेयवाश्री व्यक्तदिन्दा सेविसिदा।। (४) प्राणावायु पूर्वे ( अ. थ.) अध्याय ५१-३.४) पुष्पायुर्वेद में महाव्रत मार्ग का काव्य सुखदायक है । इस विश्व काव्य को , आप महावीर देव से एक हजार डेढ साल (१५००) वर्षों से उपलब्ध हैं ऐसा कहते हैं। कुमुदेन्दु के समय को हमने सन् ८०० है ऐसा माना है । इसमें अनुमान नहीं है । आगे यदि अंतर आए भी तो केवल ५-१० वर्षों का आ सकता है उससे अधिक नहीं । कुमुदेन्दु के कहेनुसार उनके समय के ८०० से पहले महावीर १००१/१/२९(साढे एक हजार एक साल) रहें होंगे तो महावीर का समय ईसापूर्व २०० और डेढवर्ष होंगें । इस संदर्भ में कुमुदेन्दु कहते हैं गवियोग “कुन्नाळ अरस" रस ॥ ळवरोळु “ सिरिनारायण"नु।। चवनसौभम अजितनजयन।। लवरोळु “उग्रसेन” वया।।। मवनिय अजितसेन रस। कविवंद्य श्रेणिकनरपं॥ १४-७८-८३॥
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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