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________________ सिरि भूवलय गवि योग के कुन्नाल राजा से सिरिनारायण चवन सौभम अजितंजय अजित सेन तक आदि नामों का उल्लेख करते हैं । एल्लरिगरिवंत के किंदु शेणिक । गुल्लासदिन्दा गौतमनु। सल्लिलेयिंदलि व्यासरु पेळीद । देल्ल अतीतद कथेय ॥१७- ४४- ५०॥ सभी को समझ में आने के अनुसार श्रेणिक ने उल्लास से गौतम ने व्यास के कहे हुए संपूर्ण अतीत की कथा कही । इस प्रकार कुमुदेन्दु गौतम से उपदेश प्राप्त श्रेणिक को पहले कुन्नाल से १. सितिय नारायण २. अजितंज्या ३. उग्रसेन ४. अजितसेन को कहते हैं कुन्नाल प्रसिध्द अशोक के पोते कुणाल हैं माने तो कुमुदेन्दु के कहेनुसार १००० और डेढ साल ठीक बैठते हैं। इस दिशा में सह्रदय विद्वान विचार करें ऐसा आग्रह करते हैं । दिगंबर जैन कवि अमितगति अपने संस्कृत धर्म परीक्ष में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के शिष्य बुध्द ने ही बौध्द मत का प्रचार किया ऐसा कहना श्वेतांबर संप्रदाय के उत्तराध्यन सूत्र में पार्श्व नाथ के शिष्य केशि और गौतम ने वादविवाद किया, यह सोचने का विचार है। सभी संप्रदाय के जैन ग्रंथ पार्श्व नाथ से २५० वर्षों के बाद महावीर का समय है मानते हैं, इसकी तुलना करें ऐसा हम पाठकों से आग्रह करते हैं । इस आदि मंगल पाहुड प्राभृत लगभग ईसा पूर्व २५० में रचा गया होगा ऐसा स्थूल रूप से कह सकते हैं। यह सर्वज्ञ कहे जाने वाले सर्वभाषा मयी भाषा में रहा होगा कहने के कारण यह भूवलय की भाँति ही कन्नड की प्रधान्यता में रहा होगा, ऐसा यकीनन कहा जा सकता है। इस ग्रंथ की रचना होने के बाद लगभग १० आचार्यों के बाद प्रभाव सेन नाम के सेन वंशी गुरु हरुष प्रभाव सेन गुरु । विरचिसिदरु पाहुडवं ॥ तिरेय केवलव रक्षिसलं ।। शरदोळक्षरव कट्टुवरु ।। यरडनेय गणधरदवरु ।। हरशिव शंकरगणित ।। १३-१०६-११८ ॥ 81
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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