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________________ सिरि भूवलय रसवस्तु पाहुड मंगल रूप का असदृश वैभव भाषा । इसी संदर्भ में आगे पावन पाहुड ग्रंथ ( १०- २१२) जिनेन्द्र वाणी प्राभृत (१०-२३७) रसद मंगल पाहुड ( १०- २३४) मंगल पर्यायवनोदे (११-४३) मंगल पाहुड (११ - ९२ ) इत्यादि तुसुवाणिय सेविसी गौतम ऋषियु । यशद भूवलयादि सिध्दांत ॥ सुसत गळयरके कावेम्बा हन्नेर्ड । ससमांगवनु तिरहयस्द ।। १४-५ गौतम ऋषि यशस्वी भूवलय के सिद्धांत को १२ समान भागों में मित्रों को बाँटा । इस प्रकार गौतम गणधर ने ही प्रथम भूवलय के पाँच भागों को १२ भागों में विभक्त कर 'द्वादशांग वेद' रूप के मंगल प्राभृत अथवा मंगल पाहुड में रचा था। यह ग्रंथ महावीर तीर्थंकर के समय के अति समीप समय में ही रचा गया होगा । महावीर के समय को साधारण रूप से जैन मतों वाले ईसा पूर्व और ईसा पूर्व २४७९ में कहते हैं। इस निर्णय को बुध्द देव के काल में, उनके मतों के, व्यक्तित्व के शत्रु बन कर, उनके मौसी के पुत्र देवदत्त पूरणकश्यप, पकुधकात्यन, संजय बेलट्टी पुत्त “निग्गंठ नात पुत्त" आदि सभी एक-एक मतों को प्रचारित करने में आतुर थे, ऐसा बौध्द ग्रंथों में विस्तार से विवरित है। इनके बोधित “मततत्वासार” क्या है ? इसका बौध्द ग्रंथ “त्रिपीटक” में वर्णन है । “ श्रामण्य धर्म फल सूत्र” पुस्तक में इनके उपदेश संग्रहित होकर निरूपित हुए हैं । इन तीर्थंकरों में अथवा मत प्रवर्तकों में निग्गंठनाथ पुत्त महादंडनायक, सेनापति सिंह के भी गुरु थे। यही नाथ पुत्र महावीर रहें होंगें ऐसा बौध्द ग्रंथों से जान कर महावीर के समय को पहले पाश्चात्यों और पिछले पौरात्यों ने निर्णय किया। लगभग सभी जैन मत के पंडित इसे ही मानते हैं। यह निग्गंठनाथ पुत्त नाथ वंशी होने के कारण तीर्थंकर महावीर भी नाथ वंशी ही होने के कारण एक के साथ दूसरे को नाम सादृश्य और वंश सादृश्य से जाने गये। इस बौध्द साहित्य में लिखे गए निग्गंठनाथ पुत्त के चरित्र को देखा जाए तो केवल बौध्दों ने ईर्ष्या 79
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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