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________________ सिरि भूवलय के न रहने के तीन दिन महावीर जी ने उपदेश नहीं दिए ऐसा जैन पुराण में वर्णित है। महावीर जी के मोक्ष प्राप्त करने तक के कहे गए दिव्योपदेश संपूर्ण रूप से गौतम गणधर द्वारा संग्रहित होकर आगे गौतम गणधर से मगध देश के राजा सेनिक को और उनकी पत्नी चेलिनी को उपदेशित हुए हैं, ऐसा समस्त जैन पुराणों में विस्तृत रूप से निरूपित है। ऐसे ही संग्रहित ग्रंथ ही पूर्वेग्रंथ हैं, ऐसा कुमुदेन्दु कहते हैं। नवमांक पध्दति द्वारा रचित इस ग्रंथ को “करण सूत्र” नाम से पुकारा गया है इस संदर्भ में कुमुदेन्दु कहते हैं नव कारा मंत्र दोळादिय सिध्दांत । अवयव “पूर्वेय ग्रंथ” ।। दवतारदादिमद अक्षरमंगल । नव अ अ अ अ अ अ अ अ अ ॥१- १०२ ॥ नवकार मंत्र के प्रारंभ का सिद्धांत । अवयव पूर्वे ग्रंथ का "अ" अक्षर नौ अ अ अ अ अ अ अ अ अ । वशगोन्डु “अ” “आदिमंगलप्राभृत" रसद अक्षरवदु तानु ॥ १२-१३ “अ” को वश में कर आदि मंगल प्राभृत स्वयं रस का अक्षर । अ कर्मंगळं निर्मूलवं माळव । शिरूरेद “पूर्वेकाव्य ।। ३ - १५४ ॥ शिष्यों के द्वारा लिखा गया अष्ट कर्मों को निर्मूल करने वाला पूर्वकाव्य है। तारुण्यव होंदि “मंगल प्राभृत” दारदम्ददे नवनमन ॥४ - १३२ ॥ तारूण्य से भरित मंगल प्राभृत । नव नवम काव्य है। “परममंगल प्राभृतदोळु” अंकव। सरिगूडि बरुव भाषेगळं ।५० - ७९ ।। परम मंगल प्राभृत के अंक मिलकर आने वाली भाषाएँ वेदद हदिनाकु पूर्व । “ श्री दिव्यकरणसूत्रांक" ।। १० - १०.११ ।। वेदों के चौदह पूर्व । श्री दिव्य करण सूत्र । श्री गुरु “मंगलपाहुडदिं” पेळद । रागविराग सद्ग्रंथं ॥१०-१७५॥ राद-विराग सद्ग्रंथ को श्री गुरु ने मंगल गीत के रूप में कहा रसवस्तु “पाहुडमंगलरूपद" । असदृश्य वैभव भाषे ।। १० - १९५।। 78
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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