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________________ -सिरि भूवलय इस गणित के क्रम को बोध करने में मनविटु कलितवनाद कारणदिन्दा। मनुमथनेनिसिदे देवा।। (२-५) मनः पूर्वक सीखने के कारण । अर्थात मन लगाकर सीखने के कारण आप देव समान हैं ऐसा कहते हुए कृतकृत्य हुए। छोटे भाई का केवल एक ग्राम पर अधिकार होना अपने चक्रेश्वर पदवी के लिए कलंक के समान है ऐसा विचार कर भरत ने गोम्मट को शुल्क देने का और अपने अधीन राजा बने रहने को कहलवा भेजा । यह नीति गोम्मट को ठीक नहीं लगी । तब युध्द के द्वारा तय होना निश्चित हुआ। ___पध्दति के अनुसार आठ युध्द हुए। जिनमें से सात युध्द में भरत को हार मिली। आठवें युध्द में जब आखिर में भरत को हार का अनुभव होने लगा तब बडे भाई की हार को देखकर विचाराधीन हो, यदि मैं जीत जाता हूँ तो बडे भाई के राज्य का शासन करना अधर्म है और हार भी अपमान जनक है ऐसा सोचकर गोम्मट वैराग्य धारण कर राज्य को तज कर भरत के सुपुर्द कर निग्रंथ हो गया । तब भरत ने अपने अचातुर्य के लिए विषाद कर मोक्षगामी गोम्मट से स्वयं को ज्ञान दान करने का आग्रह किया। मोक्षगामी बाहुबली त्यागी होने के कारण आहार, अभय, बैषज्य, और शास्त्र नाम के चार दान में से बचे हुए शास्त्र दान करने की इच्छा से अपने पिता द्वारा बहनों को ज्ञात अक्षरांक समन्वय पध्दति से आदीश द्वारा उपदेश प्राप्त सकल ज्ञान को सर्वभाषामयी भाषा में प्रस्तुत किया। इस संदर्भ को कुमुदेन्दु भूवलय के आरंभ में इस प्रकार कहते हैं लावण्यदंग मेयीयाद गोम्मट देवा। आनागा तन्न अण्णनिगे । ईवागा चक्र बंधद कट्टी नोळु कट्टी। दा विश्व काव्य भूवलय।।(१-१९) गोम्मट देव ने अपने बड़े भाई को चक्र बंध में बाँध कर इस विश्व काव्य को दिया। कुमुदेन्दु के मतानुसार इस भूवलय के आदिकर्ता गोम्मटेश्वर ही हैं । युध्द रंग में इसने एक अन्तर्मुहूर्त( लगभग ४६ मिनटों में) सकल ज्ञान भंडार के इस काव्य को गणित पध्दतिनुसार रचित रीति को उस चक्र में समाहित अंकाक्षर संख्या को कुमुदेन्दु इस प्रकार कहते हैं - 767
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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