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________________ (सिरि भूवलय १८. बोलिदि (५-१६०) इन विचित्र नामदेय अंक लिपियों का अनुशीलन होना अभी शेष है। कुमुदेन्दु द्वारा बाँधे गए कन्नड भूवलय में उपयोग किए गए ७१८ भाषाओं के कर्माटक में प्राकृत, संस्कृत, द्रविड, आन्ध्रा, महाराष्ट्र, मलेयाल, गुर्जर, अंग, कलिंग, काश्मीर, काम्भोज, हम्मीर, शौरसेनी, वा, तेबती, वेंगी, वंग, ब्राह्मी, विजयार्ध, पद्म, वैदर्य, वैशाली, सौराष्ट्र, खरोष्ट्री, निरूष्ट्र, अपभ्रंशिक, पैशाचिक, रक्ताक्षर, अरि, अर्धमागधी, (५-२८-५८) इत्यादि हैं ऐसा कहते हैं और फिर आगे कहते हैं __ अरस, पारस, सारस्वत, बारस, वश, मालव, लाटा, दौडा, मागध, विहार, उत्कल, कन्या कुब्ज, वराह, वैश्रमण, वेदांत, चित्रकर और यक्षी राक्षसी, हंस भूत, ऊहिया, यवनानी, तुर्की, द्रविल, सैन्धव, मालवणीय, किरिय, देवनागरी लाडा, पारशी, अभित्रक, चाणक्य, मूलदेवी इत्यादि(५-२८-१२०) इस प्रकार विविध भाषा लिपियों को नवमांक सरमग्गी कोष्ठक (पहाडा, गुणन सूची) के एक ही अंक लिपि में पकड कर, बाँध कर, इन सभी भाषाओं को इस कोष्ठ बंधाक्षर काव्य शरीर में समाहित कर, सभी को कर्माटक कन्नड के अणुराशी में मिला दिया है। कुमुदेन्दु की भाँति कोई नहीं है। इस महापुरूष के काव्य की भाषा क्या है, यह सोच कर निर्णय लेने की योग्यता भी हम में नहीं है, ऐसा हम निःसंकोच स्वीकार करते हैं । भूवलय के ग्रंथ का पारंपरिक इतिहास भूवलय नाम के विश्व काव्य और उसकी परंपरा को कुमुदेन्दु इस प्रकार कहते हैं अनादि काल मे आदि तीर्थंकर के वृषभ देव ने अपने राज्य को अपने बच्चों भरत और बाहुबली(गोमट्ट) को देने के पश्चात अपनी पुत्रियों, ब्राह्मी और सौन्दरी को सकल ज्ञान मूल के अक्षरांकों को दिया, ऐसा पहले ही कहा जा चुका है। बहनों को पिता के द्वारा सिखाए गए अक्षरांक गणित के ज्ञान विद्या को भरत ने महत्व नहीं दिया परन्तु विचाराधीन गोम्मट ने - तरूणनु दौर्बली यवरक्का ब्राह्मीयु। किरिय सौन्दरी अरितिहद।। अरवतनाल्काक्षर नवमांक सोनेय। परिइह काव्य भूवलय।।(५-१७६) ब्राह्मी को अक्षर और सौन्दरी को शून्य से नवमांक । इसी से भूवलय काव्य बना। 75
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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