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________________ सिरि भूवलय भाषाओं में भूवलय की रचना की गई है और जो जिस भाषा में चाहते हैं इसमें पढ़ सकते हैं । इसीलिए ग्रंथकार ने अपनी भाषा को सर्वमयी भाषा कहा है। कुमुदेन्दु ने कई भाषाओं का उल्लेख करके भूवलय में उन्हें पढने का नियम भी बताया है । कुमुदेन्दु लिखते हैं कि संसार में १८ प्रधान भाषाएँ और ७०० विकृत भाषाएँ हैं और सभी भाषाओं के छंद भूवलय में ओत-प्रोत हैं । ग्रंथकार के इस कथन पर सहसा विश्वास करना असंभव होता है पर गणित पध्दति से संसार भर की भाषाओं की शब्दराशि की उत्पत्ति का जो क्रम कुमुदेन्दु ने बताया है उसे पढकर हमें यह बात मानने को विवश होना पडता है । कुछ भी हो यह ग्रंथ प्राचीन भारत की असाधारण प्रतिभा का जीता-जागता उदाहरण है । जैन मित्र अजितकुमार शास्त्री अक्षर और अंक द्वारा पठन-पाठन अभ्यास कब से, किस प्रकार प्रचलित हुआ ? तथा अक्षरों का लिखना दाहिनी ओर तथा अंकों का लिखना बायीं ओर क्यों रखा गया ? इन प्रश्नों का समाधान श्री पं. यल्लप्पा शास्त्री के कथनानुसार भूवलय सिद्धांत ग्रंथ में निम्न प्रकार से विद्यमान है कर्म भूमि की आदि में (तीसरे काल के अंतिम समय ) भगवान ऋषभ देव का जन्म हुआ । जब वह युवा हुए उस समय कल्पवृक्षों के द्वारा जीवन निर्वाह योग्य सामाग्री, वस्त्र, भोजानादि का मिलना बंद हो गया । इस कारण तत्कालीन जनता बहुत दुखी हुइ और समस्त जन एकत्र होकर उस जमाने के सबसे अधिक ज्ञानी अविधज्ञानधारक भगवान ऋषभ देव के पास आए और अपनी कठिनाई समाधान पूछा भगवान ने अपने अविधज्ञान से कर्मभूमि वाले विदेह क्षेत्र की व्यवस्था जान करके लोगों को खेती-बाडी, वस्त्र बनाना, पशु-पालन व्यापार आदि कार्य सिखलाए । जनता को उनकी जन्मजात योग्यतानुसार क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ग में व्यवस्थित कर दिया । इसके सिवाय भगवान ने अपने १०१ पुत्रों को भी राजनीति मल्लविद्या काम कला शस्त्र संचालन आदि कलाएं सिखलाई । 420
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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