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________________ सिरि भूवलय है उतना ही भस्म तैयार कर उससे उपचार को प्रचलित करने को कहते हैं । अपने काव्य में कवि के द्वारा ही विस्तार पूर्वक निरूपित किए कुछ वाक्य निम्न लिखित है मणि स्वर्ण रजत पारद गंधादि । क्षणदोळु भस्मवागिरुवा ॥ गणनेय हूविनायुर्वेदविद्येगे । मणिनव जलद पंख || रस विष गंध वज्रादियु लोह गळ । वशवागदोडे लोकहानि ।। रसवादिगळ शुद्धाहिंसेय काव्य I यशद कर्माटक भूवलय ॥ वणगिस देहव गुणिसुत कर्मव । गणकरिं बरेयिप गणित । देणिकेयोळोन्नु तप्पदे पेळुव । विनयांगभूषण ग्रंथ 11 रसवादिशयवैद्य भूवलयके । हसरुमूलिकेयंकगणित विषवस्तुगळनणुरूपदिन्दीयलु । विषहर नीलकंठांक 11 वशवर्तयागला रोगविण्णाणवु । रस विश गंध वज्र वश || रुषिगळु विण्णाण बरदिदे नहिमे । यल्ला समान गुणहानि काण्व || मणिशिले तुत्थवु मंडूर किट्टव गुणहानियागदे अमृत || दणुवागबेकागिह गणितौषध । गणितवल्लदे बरदरिय 11 मैय रक्षिपुदेन्दु मैयने कोल्लुव । अय्यन वैद्यशास्त्रदोळु ॥ मैय रक्तव बिट्टु सय्यववर्दक । रय्यकौषधिय कोळ्ळुवुदु ॥ मूरु रत्नगळात्मनिरुव चिरंजीव ॥ सारखदे रत्नत्रयद || भूरियौषधवदु रस- गंधक-लौह । सेरलसाध्यारोगरह ।। इस प्रकार विवरित करते जाते हैं । प्राणवायु पूर्वे अपने द्वारा निरूपित यह वैद्य शास्त्र आदि जिन से प्रारंभ होकर अंतिम जिन नरोत्तम महावीर स्वामी जी तक परंपरागत रूप से चला आया, इसे महावीर जी 399
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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