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________________ सिरि भूवलय के गणधर बने गौतम ने जान कर गणित में ग्रंथस्थ कर रखा था और आगे श्रुतकेवली लोगों ने ही पूर्वजों से लेकर स्वयं तक आया है ऐसा यह वैद्य शास्त्र चौदह पूर्वो में से एक प्राणावायु पूर्वे में, तेरह करोड विस्तार से है ऐसा जानकारी देते हैं । एक पद अर्थात जैन परंपरानुसार १६३४८८०७८८८ ध्वनियाँ बनती हैं। इतने विस्तृत वैद्य शास्त्र को विस्तार से भी संक्षिप्त में भी दोनों रीतियों से अपने गणित क्रम में समाहित किया है ऐसी जानकारी देते हैं । प्रजावाणी ५-७-१९६४ कर्लमंगलं श्री कंठैय्या रणकहळेय कूगनिल्लवागिप काव्य (युद्ध निरोधी काव्य) गणित पद्धति के द्वारा परमाणु युद्ध को रोका जा सकता है । सिरि भूवलय में कहेनुसार प्रथम भूवलय युद्धांत के समय प्रकटित हुआ। आदि जिन के ज्येष्ठ पुत्र भरत अन्याय से छोटे भाई गोमट्ट को युद्ध के लिए ललकारतें हैं परन्तु इस युद्ध में भरत की हार होती है। हार कर मरने की स्थिति में अपने बड़े भाई को देख कर गोम्मट करुणा भरित हो प्राणरक्षा देकर अपने राज्य को भी भाई को ही दे कर स्वयं दिगंबर मुनि बन जाते हैं। युद्ध रंग में ही समस्त त्याग करने वाले गोम्मट को देख कर भरत शर्मसार होते हैं । उस समय भरत मुनि बने गोम्मट से धर्मोपदेश का आग्रह करते हैं । गोम्मट अपनी छोटी-बड़ी बहन ब्राह्मी-सौन्दरी को पिता द्वारा ज्ञात अंकाक्षरविज्ञान की सहायता से अपने मानसपटल पर रचित अंकाक्षरदकट्ट (अंकाक्षरचक्रबंधन) भरत को शास्त्र दान के रूप में प्रदान करते हैं । इस घटना को कुमदेन्दु बयसिदंकाक्षरचक्रद कट्टनु । जयिसे षट्कंडव आग। जयिनत्वलाभांकसद्धर्म ओन्देरळ । बयकेय धर्मगीते यनु ॥५॥ अदरोळ गिडिद सारवनेल्ल तुंबिद । पदपद्धतिया अदनु॥ मुददि निंदायुद्धरंगदोळिवुदें । दूदगि केळलु कोट्टप्रीति ॥ -400
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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