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________________ सिरि भूवलय ६. प्रत्येक अध्याय के अंत में उस अध्याय के सही शब्दों को पद्य में ही जोडा गया है। इस ग्रंथ का यह एक अद्भुत वैशिष्टय है। इस तरह पहले अध्याय के मूल में ६५६१+अंतर ७७८५= १४३६६ शब्द बनते हैं । ७. इस अध्याय में अनेक पद्य,काव्य महिमा और जैन सिध्दांत को कहते हैं। ८. इस अध्याय में आदि वृषभ देव ने अपनी बेटियों ब्राह्मी को अक्षर का और सौन्दरी को अंकों का ज्ञान दान दिया ।उनके भाईयों को गोम्मट देव भरत को इस काव्य को चक्र बंध में बाँध कर सुनाया, ऐसी उक्ति है। ९. इस अध्याय मे तावरे(कमल) से रस सिध्दि बनाने के क्रम को, उसकी महिमा को कहा गया है। अध्याय-२ श्लोक-१५५, अक्षर संख्या-१४,४०९ पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठैय्या ____ करणसूत्र गणिताक्षर के समान ह-क को जोडा जाए तो २८+६०-८८ बनता है। "८८” को जोडा जाए तो ८+८= १६, इसे भी जोडा जाए तो १+६=७ बनता है । इस तरह सात भागों में विभक्त कर इसको ९ से भाग कर प्राप्त लब्धांक से, अपने इस काव्य का प्रारंभ किया होगा, एक सरमग्गी कोष्ठक (गुणन सूची, पहाडा) को दिया है। यहाँ अनुलोमांक को ५४ अक्षरों के वर्ग भंग कर अंकों की राशि के एक सूक्ष्म केन्द्र को ८६ अलग-अलग अंक राशि बनाकर निरूपित किया है। इस अनलोम राशि को प्रतिलोम राशि के उसी ५४ अक्षर वर्ग के ७१ अलग-अलग अंक राशि में वर्गीकरण कर, इन अंको के परस्पर घटा कर, भागब्ध कर २५ अलग-अलग अंक राशि को बनाया है। इन अंको को वर्ग भाग कर २५ अर्ध भाग कर इन अंक राशि का २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, १ पहाडे से परस्पर भंग कर अपने काव्यांक बनाकर काव्य को मोतियों के हार की भाँति पिरोया है। इस वर्ग गणित का “प्रतिलोमनवम” शुध्द नवम होने के कारण उत्तर में गलती होगी, इसमें कोई गलती नहीं है, सही उत्तर को आगे कहूँगा, इसमें एक अंक गलत आयेगा, स्वयं कहते हैं (इस गणित को श्री येलप्पा शास्त्री जी ने ठीक तरह से देख कर आने वाली एक गलती को ढूँढा है) यहाँ कुमुदेन्दु =142 =
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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