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________________ इस पुनरुक्तं ९ ‘अ’ अक्षर भूवलय के ९ खंड हैं। इस काव्य के अंकों को अक्षरों में खंडित किया जाए तो '९२ ' के लगभग अलग-अलग अंक बन कर फिर असंख्य अक्षर बन ७१८ भाषाओं में करोडों पदों के बराबर काव्य बनेगा कहते हैं । के. अनंतसुब्बाराव - १. इस पहले अध्याय में ९ चक्र हैं। पहले चक्र में पहली पंक्ति में १४वें अंक - (१) अक्षर से (अ) आरंभ करना है। अनंतर में सीधे अंतिम पंक्ति पर आना है । उसमें १५वें अक्षर से (५८ - ष) कोने से ले कर चक्र में दिखाए गए जैसे (६० - ह ) तक पढना है । बाद में चके के पहले अंकाक्षर (१ - अ) के द्वारा पुनः कोने से लेकर चक्र दिखाए जैसे आगे पढना है । उसके बाद इसी तरह चक्र के बगल में दिखाए गए जैसे क्रम से ४-५-६-७-........५३ पँक्तियों को क्रम से पढना है। इस रीति से पढने . कन्नड साहित्य का आविर्भाव २. सिरि भूवलय नवकार मंत्रदोळादिय सिध्दांत । अवयव पूर्वेय ग्रंथ ।। दवतारदादिमदक्षरमंगल । नव अ अ अ अ अ अ अ अ अ || ३. ५. पर “अष्ट्अ, म्अह्आ प्रआत् इह्आर् य्अ होता है। ये सभी पद्य कन्नड साहित्य के पद बनते हैं । इन पद्यों में प्रत्येक पद्य के पहले अक्षरों को ही जोड कर पढा जाए तो –“अट्ट विहकम्मवियला.....” प्राकृत श्लोक का आविर्भाव होता है ४. ऊपर लिखे कन्नड पद्यों के मध्य में अन्य किसी अलग-अलग अक्षरों को जोड कर पढा जाए तो " ओकारम् बिन्दु सम्युक्तम् .” संस्कृत श्लोक बनता है। ..... इस तरह इन अध्यायों के ९ चक्रों को पढा जाए तो ५३ पूर्ण पद्य, ७२ पाद पद्य, सभी मिला कर १२५ कन्नड पद्यों की रचना को पढ़ा जा सकता है। 141
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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