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________________ सिरि भूवलय नवदंक्वनेरडम परस्परदिंदम तविसुव कालक्रमदे अवतरिसिद तप्प तप्पेनलागदु सवियंकदुपदेश मुन्दे ।। २ - २३ ।। णोवदंकदे बंद तप्पितवेनिल्ल ओवियादुत्तरदंक कोविद ओदंक उत्पत्तियात्यिल्लि नववैदरिं भागवायतु ।। इस तरह कुमुदेन्दु कई अज्ञात गणित समस्याओं के राशि राशि को दिखाते है। इस दिशा में बहुत अनुशीलन होना शेष है। के. अनंतसुब्बाराव इस अध्याय में करण सूत्र को अनेक गणित लेख्य को साधु, गुरु, आचार्य, सिध्द, पुरुषों और जिनरों ने इसके लक्षणों को वर्णित कर और अक्षर - अंक सभी को ओंकार में समाहित है, ऐसा कहा गया है। अध्याय ३ श्लोक - १७४, अक्षर संख्या १७,८५६ पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठय्या कवि अपने काव्य की शोभा का वर्णन करते हुए देह और भूमि पर रहने वाले वस्तुओं, उससे संबंधित अनेकानेक विषय किस तरह एक दूसरे से जुडे हुए हैं, मर्कट (बंदर) किस तरह मानव बना, चिंतामणी रत्न का प्रस्ताव, ६४ दिव्य कलायें, कर्माटक कथन में उत्पन्न धर्म ३६३ स्वयं को ज्ञात न कथनों को सिखाते हुए, यहाँ— वहाँ उदाहरण देते हुए आदि जिनेन्द्र भूवलय कह कर प्रचारित करते हैं । के. अनंतसुब्बाराव इस अध्याय में भी अपार रूप से काव्य महिमा का वर्णन है। अध्यात्मक योग, सर्वज्ञ दर्शन, अनंत गुण, देश चरित्र (इतिहास) दर्शन, ज्ञान, इतिहास, सिध्दि का क्रम आदि को वर्णित किया है। 143
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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