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________________ -(सिरि भूवलय वस्तु परिचय (अध्याय ५५१-८) अध्याय-१ श्लोक-१२५, अक्षर संख्या- १४,३४२ पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठैय्या : कुमुदेन्दु मुनि अपने पहले अध्याय में ग्रंथ का प्रमाण इस तरह कहते हैं धर्मध्वज्दरोळु के त्तिद चक्र। निर्मलदष्ट हूवुगळम।। स्वर्मनदलगळ ऐवत्तोन्दु सोनेयु। धर्मद कालु लक्षगळे।। आपाटि अंकदोळ ऐदु साविर कूडे। श्री पादपद्मदनद।। रूपि अरूपिय ओन्दरोळ पेळुव । श्री पध्दतिय भूवलय।। अर्थात इस प्रकार भूवल्य के अंक, अक्षर पद्मदलों ५१०२५००० के बराबर हैं। इस संख्या में ५००० मिला दिया जाए तो समस्त भूमंडल का अक्षर संख्या बन जाएगा, यह सूचित करते हैं । इस ५१०३०००० को गणित का संयुक्तांक ९ से प्रारंभ कर नवमांक गणित पध्दति के द्वारा इस संख्या राशि को भागित करते हैं। उसको (अंतरपद्य १-६८से ७६) करुणेयोम्बत्तु इप्पत्तेळु ॥६८॥ अरुहन गुणवेम्बत्तु ओन्दु ।६९।। सिरियोळ्नूरिप्पत्तोम्बत्म ॥७०॥ बरुव महांकगळारु ॥७१।। एरडने कमल हन्नेरडु ॥७२॥ करविडिदेळंक कुम्भ ॥७३।। अरुहन वाणि ओम्बत्तु ॥७४।। परिपूर्णनवदंक करग ॥७५।। सिरिसिध्दं नमह ओम हत्तु॥७६।। इस प्रकार वर्णमालाक्षर राशि ·९-२७-८१-७२९' इस व्यूह का '६-१२-७-९' इस तरह पूर्ण वर्गों में विभक्त कर ९७९-८१७७९*९-६५६१ इस संख्या में इस पहले अध्याय को समाप्त करते हैं। इस प्रकार इस राशि में अपुनरुक्त रूप से ९ ‘अ’ हैं कहते हैं 140
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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