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________________ चतुर्दशाक्षरवृत्तं वसन्ततिलका नाम कथ्यते-- तल्लक्षणं यथा "ज्ञेया वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।" यत्र तगणभगण-जगण-जगणाः, गुरुद्वयं च सा 'वसन्ततिलका' वृत्तं भवति । तस्योदाहरणं यथातुभ्यं नमस्त्रिभुवनात्तिहराय नाथ !, तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय , तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधि-शोषणाय । [इति श्रीमदाचार्यमानतुङ्गसूरीश्वरविरचिते श्रीभक्तामरस्तोत्रे श्लोके २६ तमे प्रोक्तम् ।] तगणः भगणः | जगणः जाणः 64 वसन्ततिलका तुभ्यं न | मस्त्रिभु | वनाति हराय | ना | थ वृत्तम् । उम्पन | मस्त्रिभु | वनात्ति हराय | | ॥ | ।। | ।। | | यथा मत्कृतिः. लावण्यसूरिपमणेर्बुधदक्षशिष्य तस्यान्तिषत्क मुनिराजसुशीलदृब्धम् । रम्यं किलाष्टकमिदं विबुधार्थजात मा पुष्पदन्तमनिशं पठतां शिवः स्यात् ॥ साहित्यरत्नमञ्जूषा-५६
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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