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रुचिरा हे शूरवीर ! तुं अभिमान रूपी हाथी के लिए सिंह समान, स्वर्ग के सुख तुल्य राज्यादि सुख के त्यक्ता, ईश्वर, अनगार, अश्व सम शुभ गतिमान, भयंकर काम के निवारक, वीर, देदीप्यमान, हास्य रहित, पूर्ण सुखी, पाप के हर्ता श्री महावीर स्वामी की सर्वदा उपासना कर ॥२६।।
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जिनेन्द्रस्तोत्रम्