________________
रुचिरा
हे विनयभाववान याचक ! तुं भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेकानेक अभिग्रह के कर्ता (त्याग के समुद्र ), त्याग भाव के प्रदाता श्रेष्ठ, संसार में कल्पतरु तुल्य, वायु सम सर्वत्र यशवाले, चंद्र सम प्रभावाले, प्रशस्य दान के प्रदाता, रक्षक, संसार सागर से तारनेवाले, ऐश्वर्यवान, दाता श्री कुंथुनाथ भगवान की अर्चना कर ||१९||
१२०
जिनेन्द्रस्तोत्रम्