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अन्चयः - (भो) भभ ! [हे भ्रमाकुलभूपते !] भभम् [सत्यप्ररूपकम् भभम्
[पर्जन्यवद् गम्भीरध्वनिम्] भभम् [शुक्लध्यानवन्तम्] भम् [अनामयम् भभभभभम् [भौमगगनसुधीनक्षत्रसूर्योपमम्] भभम् [श्रेष्ठमन्त्रम् भभभम् [चन्द्रशोभावद्वक्त्रवन्तम्] भभभम् [महीपतिमयूरमेघम्] भम् [आरोग्यप्रदम् भम् [श्रेष्ठम् धर्मम् [श्रीधर्मनाथस्वामिनम्] त्वं हृदये [त्वमन्त:करणे] धर [धेहि] ।
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जिनेन्द्रस्तोत्रम्