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________________ *पाश्वनाथ-चरित. इन्कार करेंगे, तो मैं आपहीसे पूछंगी, कि रानी श्रीदेवीके पोछे आपने अपने जीवनका फ्यों त्याग किया था ? यदि भापके जीवन त्यागफी बात सत्य है तो फिर इस शुकका क्या अपराध!" यह सुनकर राजाको बड़ा ही आश्चर्य हुआ और वह चिन्तामें पर गया कि इस शुकोको मेरा यह वृत्तान्त कैसे मालूम हुमा ? अन्तमें उसने कहा, "हे भद्रे ! मुझे बड़ा ही आश्चर्य हो रहा है फि तुझे यह बात फैसे मालूम हुई ? इस सम्बन्धमें तुझे जो कुछ मालूम हो, वह कह सुना।" शुकोने कहा, "हे राजन् ! एक समय आपके राज्यमें एक परिवाजिका (जोगिन) रहती थी। वह महा कपटी, टोने-टटकेमें निपुण और मन्त्र-तन्त्रमें भी बहुत प्रवीण थी। एक दिन आपकी श्रीदेवी नामक रानीने उसे बुलाकर कहा, "हे माता ! मैं राजाकी रानी हूँ । राजाके और भी अनेक रानियां हैं किन्तु कर्मवशात् मैं दुर्भगा हूँ। राजा मेरे घर नहीं आते इसलिये हे भगवतो! मुझपर प्रसन्न होकर ऐसा कीजिये कि मैं पतिको प्यारो बन सकू। साथ ही यह भी होना चाहिये कि जबतक मैं जीवित रहूं, तबतक मेरे पति भी जीवित रहें और यदि मेरी मृत्यु हो जाय, तो मेरे पति भी अपना प्राण त्याग दें।" ___ यह सुन परिवाजिकाने कहा-"राजाकी स्त्री होना बहुतही बुरा है । एक तो सैकड़ों सपत्नियों ( सौतों) के बीचमें रहना, दूसरे पुत्रोत्पत्ति न होनेके कारण वंध्या कहलाना, साथही घरके अन्दर भी स्वेच्छा पूर्वक विचरण करनेकी स्वतंत्रता न रहना । वास्तवमें यह बडे ही कष्टकी बाते हैं। शास्त्रका कथन है
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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