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________________ * सप्तम सगे मेरे पास उपस्थित करो। उसे मैं चोरकी तरह सजा दूंगा।" यह कह राजा चला गया। दूसरे दिन खेतके रक्षकोंने शुकको जालमें फंसानेकी तैयारी की और ज्योंही वह बालियां लेने आया त्योंहीं उसे जालमें फांस लिया गया। इसके बाद वे उसे पकड़ कर राजाके पास ले गये। शुककी यह अवस्था देख शुकी भी अश्रुपात करती हुई राज मन्दिर में पहुंची। शालिरक्षकोंने शुकको राजाके सम्मुख उपस्थित करते हुए कहा-"नाथ ! यही वह शुक है । जिसने शालिक्षेत्रको चौपट कर दिया है।" सेवकों की यह बात सुन राजाने क्रुद्ध हो अपनी तलवार उठायी, किन्तु ज्यों ही वह शुकको मारने चला, त्यो ही शुकीने बोचमें कूदकर कहा—"हे राजन् ! यदि क्षेत्र नष्ट करनेके लिये आप दण्ड हो देना चाहते हैं, तो मुझे दोजिये, क्योंकि यह अपराध वास्तवमें मैंने ही किया है। शुक निर्दोष है, अतएव इसे छोड़ दोजिये। इसने तो मेरे आदेशानुसार बालियां ला लाकर मेरा दोहण पूर्ण किया है और मेरा प्राण बचाया है।" शुकीकी यह बात सुनकर राजाको हंसी आ गयी । उसने शुफकी ओर देखकर कहा,“हे शुक! प्रियाके कहनेसे अपने जीवनको इस तरह खतरेमें डालते समय तेरा लोक प्रसिद्ध पाण्डित्य कहां चला गया था ?" इसी समय राजाके इस प्रश्नका उत्तर देते हुए शुफीने कहा, "हे राजन् ! पिता-माता और धनादिक त्यागना तो एक साधारण बात है, किन्तु पुरुष अपनी स्त्रीके लिये प्राण भी न्यौछावर कर सकता है। यदि आप इसे माननेसे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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