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________________ त्रैवर्णिकाचार। १३७ ॐ हाँ निखिललोकपवित्रीकरणगन्धोदकेनाभिषेचयामि जिनम् । गन्धोदकेनोत्तमाङ्गस्य सेचनम् ॥ इति स्नपनविधिः ॥ ६२ ॥ “ओं ह्रीं " यह मंत्र पढ़कर गन्धोदकसे जिन भगवानके मस्तकका सेचन करै । इस तरह स्नपन विधि पूर्ण हुई ॥ ६२॥ . अष्टद्रव्यार्चन मंत्रततः प्रतिमामानीय यन्त्रेमध्ये संस्थाप्य सम्पूजयेत् ॥ स्नपनाभावे अधिवासनात्मालङ्करणपर्यन्तं विधानमाचर्य यन्त्रे एव प्रतिमाया आव्हानादिकं कृत्वा सम्यक् पूजयेत् ॥ तद्यथा ॥ ६३ ॥ ॐ हाँ न्ही हूँ हाँ हः अ सि आ उ सा जलं गृहाण गृहाण नमः ॥ एवं गन्धाक्षतकुसुमचरुदीपधूपफलैश्च जिनं पूजयेत् ॥ पूर्णायं जाप्यं जपेत् ॥६४॥ स्नानविधि हो चुकनेके बाद प्रतिमाको उठाकर यंत्रके मध्य भागमें स्थापन कर पूजा करै । यदि प्रतिमाको स्नान न कराना हो तो आव्हानसे लेकर जिन चरणार्पित गंधसे स्वशरीको भूषित करने तककी विधान करै । और यंत्रमेंही प्रतिमाका आव्हानादिक करके अच्छी तरह पूजा करै । वह इसतरह कि ॥ ६३॥ ___“ओं ह्रीँ श्रीं ॥ इत्यादि मंत्र पढ़कर जल चढ़ावै । इसी तरह गन्ध अक्षत पुष्प नैवेद्य दीप धूप और फलसे जिन देवकी पूजा करै । बाद पूर्णार्घ्य देकर जाप जपै ॥ ६४ ॥ जयादिदेवतार्चनमंत्रततः पञ्चपरमेष्ठिनां पूजां कुर्यात् ।। इति कर्णिकाभ्यर्चनम् ॥ ६५ ॥ इसके बाद पंचपरमेष्टिकी पूजा करै । इस तरह जो कमलाकार यंत्र बनाकर मध्य कर्णिकामें पंच परमेष्ठीकी स्थापनाकी थी उसका पूजाविधान समाप्त हुआ ॥ ६५ ॥ अष्टपत्रेषु-ॐ हीं जये विजये अजिते अपराजिते जम्भे मोहे स्तम्भे स्तम्भिनि सर्वा अप्यायुधवाहनसमेता आयात आयात इदमयं चरुममृतमिव स्वस्तिकं यज्ञभागं गृहीत गृहीत स्वाहा ॥ इति जयादिदेवीरभ्यर्चयेत् ॥६६॥ उस कर्णिकाके चारों और आठ पत्तें खेंचकर जो जयादि आठ देवियोंकी स्थापना की थी उनकी “ओं ह्रीं जये विजये " इत्यादि पढ़कर अर्घ चढ़ावे ॥ ६६ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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