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________________ १३६ सोमसेनभट्टारकविरचित “ओं ह्रीं इवीं ” इत्यादि पढकर प्रतिमाको आचमान करावे ॥ ५४ ॥ ॐ हाँ क्रॉ समस्तनीराजनद्रव्यैर्नीराजनं करोमि अस्माकं दुरितमपनयतु ___ भवतु भगवते स्वाहा ॥ नीराजनार्चनम् ॥ ५५ ॥ “ओं ह्रीं क्रौं ” इत्यादि पढ़कर जिनेंद्र देवकी आरती उतारे ॥ ५५ ॥ ॐ हाँ काँ प्रशस्तवर्णसर्वलक्षणसम्पूर्णायु धवाहनयुवतिजनसहिता इन्द्राग्नियमनिर्ऋतिवरुणपवनकुबेरेशानशेषशीतांशवो दश दिग्देवता आगच्छत ॥ इत्यादि दिक्पालार्चनम् ॥ ५६ ॥ “ओं ह्रीं क्रौं" इत्यादि पढकर दिक्पालोंका अर्चन करे ॥ ५६ ॥ ॐ हाँ स्वस्तये कलशोद्धारणं करोमि स्वाहा ॥ कलशोद्धारणम् ॥५७॥ “ओं ह्रीं स्वस्तये ॥ इत्यादि पढ़कर जिनाभिषेकके लिए कलशोंको हाथमें लेवें ॥ ५७ ॥ ॐ हाँ श्रीँ क्लाँ ऐं अर्ह वं मं हं संत पंचं मं हं सं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं ईवाँ ईवाँ श्वाँ श्वाँ द्राँ द्राँ द्रां द्रां द्रावय द्रावय नमोऽहंते भगवते श्रीमते पवित्रतरजलेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा ॥ जलस्नपनम् ॥ ५८ ॥ “ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ” इत्यादि मंत्र पढ़कर कलश जलसे जिन देवका अभिषेक करे ॥ ५८॥ ॐ हाँ श्रीँ-इत्यादि श्रीमते सर्वरसेषु पवित्रतरनालिकेररसाम्ररसकदलीपनसेक्षुरसघृतदुग्धदधिभिः जिनमभिषेचयामि स्वाहा ॥ ५९॥ “ओं ह्रीं श्रीं " इत्यादि पढ़कर पंचामृताभिषेक करे ॥ ५९॥ ॐ नमोऽर्हते भगवते कङ्कोलैलालवङ्गादिचूर्जिनाङ्गमुद्वर्तयामि स्वाहा ॥६०॥ “ओं नमोऽर्हते” इत्यादि पढ़कर कंकोला इलायची लवंग आदिसे प्रतिमाका उद्वर्तन करे॥६०॥ • ॐ हाँ श्रीँ क्ती इत्यादि श्रीमते पवित्रतरचतुष्कोणकुम्भपरिपूर्णजलेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा ॥ कोणकुम्भजलस्नपनम् ॥ ६१ ॥ “ओं ह्रीं " यह पढ़कर सिंहासनके कौनोंपर रक्खे हुए जलके कलशोंसे भगवानका आभिषेक करे॥ ६॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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