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________________ सोमसेनमारकाविरचित विद्यादेवतार्चनमंत्रषोडशपत्रेषु - ही रोहिणि प्रज्ञप्ते वज्रशृंखले वज्राङ्कुशे अप्रतिचके पुरुषदत्ते कालि महाकालि गान्धारि गौरि ज्वालामालिनि वैराटि अच्युते अपराजिते मानसि महामानसि चेति सर्वा अप्यायुधकाहनसमेता आयात आयातेदमध्ये गृहीत गृहीत स्वाहा ॥ इति विद्यादेवतार्चनम् ॥ ६७ ॥ उन आठ पत्तोंके चारों ओर सोलह पत्रोंमें “ओं ह्रीं रोहिणी , इत्यादि पड़कर सोलह विद्यादेवोंकी पूजन करै ॥६७॥ | शासनदेवतार्चन मंत्रचतुर्विंशपत्रेषु-ॐ ही चक्रेश्वरि रोहिणि प्रज्ञप्ति वज्रशृङखले पुरुषदत्ते मनोवेगे कालि ज्वालामालिनि महाकालि मानवि गौरि गांधारि वैराटि अनन्तमति मानसि महामानसि जये विजये अपराजिते बहुरूपिणि चामुण्डे कूष्माण्डिनि पद्मावति सिद्धायिनि सर्वा अप्यायुधवाहनसमेता आयात आयात इदमयं गृह्णीत गृह्णीत स्वाहा ।। इति शासनदेवतापूजनम् ॥६८॥ चौबीस पत्रोंपर “ओं ह्री चक्रेश्वरी” इत्यादि पढ़कर चक्रेश्वरी आदि चौवीस शासन देवोंकी अर्घसे पूजन करै ॥ ६८॥ इंद्रार्चन मंत्रद्वात्रिंशत्पत्रेषु-ॐ ही असुरेन्द्र नागेन्द्र सुपर्णेन्द्र द्वीपेन्द्रो दधीन्द्र स्तनितेन्द्र विद्युदिन्द्र दिगिन्द्र अग्नीन्द्र वाविन्द्र किन्नरेन्द्र किम्पुरुषेन्द्र महोरगेन्द्र गन्धर्वेन्द्र यक्षेन्द्र राक्षसेन्द्र भूतेन्द्र पिशाचेन्द्र चन्द्रादित्य सौधर्मेन्द्र ईशानेन्द्र सनत्कुमारेन्द्र माहेन्द्रेन्द्र ब्रह्मेन्द्र लान्तवेन्द्र शुक्रेन्द्र शतारेन्द्रानतेन्द्र प्राणतेन्द्रारणेन्द्राच्युतेन्द्र सर्वेऽप्यायातायात यानायुध. युवतिजनैः सार्धं भूर्भुवः स्वः स्वधा इदमयं चरुममृतमिव स्वस्तिकं यज्ञभागं गृहीत गृहीत ॥ इतीन्द्राणामभ्यर्चनम् ॥ ६९ ॥ बत्तीस पत्रोंपर “ओं ह्रीं असुरेन्द्र " इत्यादि पढ़कर असुरेन्द्रादि वत्तीस इंद्रोंकी पूजा करै ॥ ६९॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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