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________________ XXVIII : पंचलिंगीप्रकरणम् * निंदा - * * संवेग - मुक्ति की अदम्य चाह, निर्वेद - मुक्ति के अतिरिक्त सबसे विरक्ति, मिथ्यात्व के प्रति निंदा का भाव, गर्दा असम्यक्त्व के प्रति तिरस्कार का भाव, उपशम - कषायों का शमन, भक्ति - देव-गुरु-धर्म के प्रति भक्ति-भाव, वात्सल्य - सभी सद्धार्मिकों के प्रति निःस्वार्थ वात्सल्य का भाव, तथा ८. अनुकम्पा - दीन-दुःखियों के प्रति करुणा व उनका दुःख दूर करने की तत्परता। इन आठ सम्यक्तव-लिंगों का समावेश श्वेताम्बर परंपरा के ग्रंथों में उल्लिखित निम्न पाँच लिंगों में हो जाता है: - १. शम - ' उपशम जिसमें निंदा व गर्दा का भी समावेश हो जाता है, २. संवेग - इसमें वात्सल्य व भक्ति भी समाविष्ट हैं, निर्वेद - संसार से विरक्ति का भाव, अनुकम्पा - दीन-दुःखियों के प्रति करुणा व उनका दुःख दूर करने की तत्परता, तथा ५. आस्तिक्य - सर्वज्ञ प्ररूपित सद्धर्म में दृढ़ श्रद्धा। प्रशम और उपशम - क्रोध, मान, माया व लोभ कषायों का संपूर्ण शमन व उससे प्राप्त आत्मिक शान्ति प्रशम है। उपशम का अर्थ है इन कषायों का आंशिक
SR No.023142
Book TitlePanchlingiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Beliya
PublisherVimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust
Publication Year2006
Total Pages316
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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