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________________ आमुख : XXVII अनुमान लगा लिया कि वृद्धा की जो मानसिक स्थिति थी उसमें यदि उन्होंने उससे स्पष्ट कह दिया कि उसके पुत्र का देहान्त हो गया है तो हो सकता है कि वह उनकी भी बात मानने से मना करदे। अतः उन्होंने उससे कहा कि वह गाँव मे जाकर ऐसे घर से एक मुट्ठी सरसों ले आए जिसमें कभी किसी की मृत्यु न हुई हो। “तुम जैसे ही वह सरसों ले आओगी मैं तुम्हारे पुत्र को अच्छा कर दूंगा”, उन्होंने वृद्धा से कहा। वृद्धा दौड़ती हुई गॉव के पहले ही घर में गई और सरसों मांगी तो गृहिणी ने तुरंत ही लाकर दी किंतु जब वृद्धा ने पूछा कि इस घर में कभी कोई मरा तो नहीं तो गृहिणी ने कहा कि उस घर में तो उसके सास, श्वसुर, जेठ आदि बहुत से लोगों की मृत्यु हो चुकी है। निराश होकर वृद्धा दूसरे, तीसरे, आदि गाँव के सभी घरों से निराश ही लौटी क्योंकि वहाँ भी किसी न किसी की मृत्यु हुई थी। हताश होकर वह वहाँ आई जहाँ भगवान् बुद्ध बिराजमान थे और कहा कि वह सरसों नहीं ला सकी क्योंकि पूरे गाँव में एक भी ऐसा घर नहीं था जिसमें किसी न किसी की मृत्यु न हुई हो। तब भगवान बुद्ध ने उसे जीवन और मृत्यु का सत्य बताया और कहा, “जो भी जन्म लेता है वह अवश्य मरता है, यही प्रकृति का नियम है। तुम्हारा पुत्र भी जन्मा और उसने अपना जीवन जी लिया, अब उसकी मृत्यु हो चुकी है। मृत्यु से आज तक कोई नहीं बच सका है।" उस अनुभव ने मृत्यु के बारे में वृद्धा की दृष्टि बदल दी। जिस पुत्र की मृत्यु कुछ समय पहले तक असहनीय लग रही थी, वह दृष्टि परिवर्तन के पश्चात अब उतनी असहनीय नहीं रह गई थी। सम्यक्त्व के सूचक लिंग - सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन को धर्म का आधार कहा गया है। दर्शन मिथ्या और सम्यक् दो प्रकार का हो सकता है। यद्यपि यह एक अव्यक्त और आंतरिक तथ्य है, इसके कुछ बाह्य सूचक होते हैं। दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार सम्यक्त्व के निम्न आठ बाह्य सूचक या लिंग हैं: -
SR No.023142
Book TitlePanchlingiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Beliya
PublisherVimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust
Publication Year2006
Total Pages316
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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