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________________ इतने गुणों के धारक होने पर भी गौतम स्वामी गुरु की शरण में रहते थे? जो स्वयं ही सब के गुरु होने योग्य हैं, उनका भी कोई गुरु है ? इस संबंध में सुधर्मा स्वामी का कथन है कि गौतम स्वामी ऐसे गुण और ज्ञान के धारक होने पर भी अपने गुरु भगवान् महावीर की शरण में रहते थे। वे भगवान् का ऐसा विनय करते थे, मानों विनय के साक्षात रूप ही हों। उनमें जो लब्धियां थीं वे अभिमान चढ़ाने या बढ़ाने के लिए नहीं थीं। __ श्री सुधर्मा स्वामी, जम्बू स्वामी से कह रहे हैं कि ऐसे गौतम स्वामी, भगवान् से न बहुत दूर, न बहुत समीप आत्मा को संयम-तप से भावित करते हुए विचर रहे हैं। उन्हें यह विचार ही नहीं है कि हम ऐसे ज्ञानी और गुणी हैं, इसलिए अलग रहकर अपना नाम फैलावें, क्योंकि यहां रहेंगे तो भगवान् के होते हमें कौन पूछेगा? जहां केवल ज्ञानी विराजते हैं वहां दूसरा चाहे जितना बड़ा विद्वान् क्यों न हो, उसकी पूछ नहीं होती। कैसी भी प्रकाशमान सर्च लाइट क्यों न हो, सूर्य की बराबरी नहीं कर सकती। गौतम स्वामी ने अपना अलग संघ बनाने का कभी विचार नहीं किया। वह इतने विनीत हैं कि भगवान् के चरण कमलों के भ्रमर बने रहते हैं और तप एवं संयम की साधना करते है। संयम और तप मोक्ष के प्रथम अंग हैं। संयम और तप में अन्तर यह है कि संयम नये कर्म नहीं बंधने देता और तप पुराने कर्मों का नाश करता है। जब नये कर्मों का बन्ध बंद हो जाता है और पुराने कर्म क्षीण हो जाते हैं तो मुक्ति के अतिरिक्त और क्या फल हो सकता है? इसी कारण गौतम स्वामी संयम और तप की आराधना करते हुए भगवान् के समीप विचर रहे हैं। हमे सुधर्मा स्वामी का कृतज्ञ होना चाहिए जिन्होंने गौतम स्वामी जैसे महान् पुरुष के महान् गुणों का वर्णन करके हमारे सामने एक श्रेष्ठ आदर्श उपस्थित किया है। उन्होंने ऐसा न किया होता तो हम गौतम स्वामी का परिचय कैसे प्राप्त करते? गौतम स्वामी के सद्गुणों को जानकर, हमें कर्तव्य का विचार करना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि उनके गुणों को जानकर, हममें जितनी भी शक्ति है वह सब दूसरे कामों में न लगाकर ऐसे काम में लगावें जिसमें गौतम स्वामी के गुणों की आराधना हो। गौतम स्वामी ने अनेक गुणों से विभूषित होने पर भी भगवान् के शिष्य रहने में लघुता में ही महत्ता देखी। उन्हें अपनी गुरुत्ता का ध्यान नहीं आया। अपनी गुरुत्ता को भूलने में ही महान् गुरुत्ता है। एक कवि ने कहा है-- १५८ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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